एमएसपी पर फसल न खरीदने के षडयंत्र का हुआ पर्दाफाश
चंडीगढ, (विश्ववर्ता, गुरप्रीत) किसानों को 2022 तक दोगुनी आय करने का झुनझुना दिखाकर सत्ता हथियाने वाली भाजपा सरकार अब किसान की ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ प्रणाली ही खत्म कर उसे बाजारी ताकतों के रहमोकरम पर छोडऩे का घिनौना षडयंत्र कर रही है। दुर्भाग्य से हरियाणा की खट्टर सरकार किसानों से किए जा रहे धोखे की लैबोरेटरी बन गई है।भाजपा सरकार यह भूल रही है कि देश की खाद्य सुरक्षा हरियाणा व पंजाब पर निर्भर है तथा खाद्यान्न के केंद्रीय कोटे में हरियाणा व पंजाब का (खास तौर पर गेहूँ की फसल) 65 प्रतिशत से अधिक हिस्सा है। ज्ञात रहे कि 2019-20 रबी सीजऩ में देश में 341.33 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न की खरीद हुई। इसमें से 222.30 लाख मीट्रिक टन खाद्यान्न अकेले पंजाब व हरियाणा ने दिया (पंजाब – 129.10 लाख मीट्रिक टन, हरियाणा – 93.20 लाख मीट्रिक टन)।
किसान की मेहनत की पीठ में भाजपा सरकार द्वारा खंजर घोंपने की साजिश सनसनीखेज तथ्यों से साबित होती है:-
प्रधानमंत्री ही किसान की फसल खरीद पर पाबंदी लगा रहे। भारत सरकार के फूड प्रोक्योरमेंट विभाग के संयुक्त सचिव की 18 अक्टूबर, 2019 की सनसनीखेज ईमेल से उजागर हुआ है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने स्नष्टढ्ढ तथा भारत सरकार के खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग से कहा प्रधानमंत्री खाद्यान्नों की खरीद में कटौती करना चाहते हैं तथा खाद्यान्न पर दी जाने वाली सब्सिडी को कम करना चाहते हैं। इसकी पृष्ठभूमि सरकारी एजेंसियों द्वारा गेहूँ व धान की फसल की खरीद बारे है।केंद्र सरकार के सेंट्रल पूल की खाद्यान्न खरीद केवल ‘जनवितरण प्रणाली’ व अन्य तबकों तक सीमित कर दी जाए। प्रति एकड़ कितने क्विंटल खाद्यान्न खरीद हो, इसकी सीमा निश्चित की जाए। यह भी निश्चित हो कि कितने एकड़ भूमि से उपजी फसल की सरकारी एजेंसियों द्वारा खरीद की जाएगी। गेहूँ व धान की फसल उगाने वाले प्रांतों में गेहूँ व धान की बजाए दूसरी फसलों की खरीद के प्रोत्साहन बारे उठाए जाने वाले कदमों की व्याख्या करें।
उपरोक्त ईमेल की कॉपी संलग्नक
2. भाजपा सरकार के ‘कृषि लागत और मूल्य आयोग’ने भी 2020-21 की रबी मार्केटिंग सीजऩ रिपोर्ट में गेहूँ व धान की सरकारी खरीद में कटौती की सिफारिश की।
साफ है कि भाजपा सरकार हरियाणा व पंजाब से गेहूँ तथा धान खरीदी पर पाबंदी लगाना चाहती है।
3. भाजपाई षडयंत्र का तीसरा पहलू ‘फूड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया’ (स्नष्टढ्ढ) पर तालाबंदी है। भाजपा सरकार ने पाँच साल में स्नष्टढ्ढ को खाद्यान्न सब्सिडी का पैसा देना ही लगभग बंद कर दिया। दो चौंकाने वाले तथ्य ये हैं कि
भाजपा सरकार द्वारा एफसीएल को 1,74,000 करोड़ रु. आज भी देय है।
पाँच सालों में एफसीएल का कर्जा 2,65,000 करोड़ रु. हो गया है। इसमें से अधिकतर कर्ज 8 प्रतिशत या उससे अधिक ब्याज पर लिया गया है।
नतीजा यह है कि एफसीएल पूरी तरह से कर्ज में डूब चुकी है। न तो भारत सरकार खाद्य सब्सिडी का पैसा दे रही और दूसरी तरफ भारी ब्याज पर लिए गए कर्ज को चुकाने का कोई रास्ता नहीं बचा। अगर एफसीएल पर ताला लग जाएगा, तो किसान की खरीद कौन करेगा। खट्टर सरकार ने पहले से ही किसान की फसल खरीद पर प्रति एकड़ 5 क्विंटल की सीमा लगाकर हरियाणा के किसान को बर्बादी की कगार पर ला खड़ा किया है। बाजरा, सरसों व सूरजमुखी आदि फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद 5 क्विंटल प्रति एकड़ से अधिक नहीं की जाती तथा उसका ब्यौरा भी अब पहले से ही ऑनलाईन दर्ज करवाना अनिवार्य कर दिया गया है। नतीजा यह है कि बाजरा व सरसों की फसलों में किसान को एमएसपी से 500 रु. से 800 रु. प्रति क्विंटल कम भाव मिला व किसान लुटा। समय आ गया है कि दिल्ली की भाजपा सरकार व हरियाणा की भाजपा-जजपा सरकार जवाब दें।
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