सरदार सुखबीर सिंह बादल ने राष्ट्रपति से पी.यू में गवर्नेंस सुधारों पर चासंलर की उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट को वापिस लेने का निर्देश देने का आग्रह किया
राष्ट्रपति से यह भी अनुरोध किया कि पंजाब के राज्यपाल को एक्स- आॅिफसियों चासंलर के रूप में बहाल करने के अलावा क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार को सुनिश्चित करने के लिए पीयू के क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र में कटौती न की जाए
वाईस चांसलर डाॅ. राजकुमार को हटाने की मांग की
चंडीगढ़/17जुलाई: शिरोमणी अकाली दल के अध्यक्ष सरदार सुखबीर सिंह बादल ने आज राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से आग्रह किया है कि वे पंजाब यूनिवर्सिटी के सहयोग से गवर्नेस रिफाॅम्र्स पर चांसलर की उच्च स्तरीय कमेटी द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट को वापिस लें, इसके अलावा यूनिवर्सिटी के अधिकार में किसी तरह की भी कटौती न करें। उन्होने यह भी आग्रह किया कि पंजाब के राज्यपाल को वाईस चांसल डाॅ. राजकुमार को हटाने के अलावा पंजाब विश्वविद्यालय के एक्स- आफिसियों चांसलर के रूप में बहाल किया जाए।
राष्ट्रपति को लिखे एक पत्र में सरदार सुखबीर सिंह बादल ने उनसे आग्रह किया कि वे पंजाबियों की आहत भावनाओं को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करें क्योंकि पंजाब विश्वविद्यालय की संस्कृति तथा प्रशासनिक हस्तक्षेप से बहुत बुरी तरह प्रभावित हुई है। उन्होने कहा कि पंजाबी अपनी संस्कृति को इस क्षेत्र और शासन सुधारों की आड़ में विदेशी विचारों, मूल्यों और सांस्कृतिक लोकाचार को नष्ट करने की साजिशों से काफी ज्यादा परेशान हैं।
अकाली दल अध्यक्ष ने कहा कि विश्वविद्यालय के संस्थापकों की इच्छाशक्ति और दूरदर्शिता के अनुसार पंजाब के लोगों ने यह संस्था बनाई थी, ताकि उनकी अकादमिक , बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत को सरंक्षित किया जा सके। उन्होने कहा कि हालांकि राज्य के पुनर्गठन के समय विश्वविद्यालय को ‘‘ अंतर-राज्य निकाय कारपोरेट’’ के रूप में वर्गीकृत किया गया था और अधिनियम में ‘सरकार’’ शब्द को ‘‘पंजाब सरकार ’’ बदलकर ‘‘भारत सरकार’’ को प्रभावी ढ़ंग से लागू कर दिया गया। ‘‘ बाद में एक और संशोधन से पंजाब के राज्यपाल के बजाय उपराष्ट्रपति को विश्वविद्यालय का चासंलर बनाया गया’’।
सरदार सुखबीर सिंह बादल ने यूनिवर्सिटी को लगे नए झटके की बात कहते हुए कहा कि नवंबर 2022 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने उस वर्ष की नई शिक्षा नीति के अनुरूप शासन सुधारों पर सुझाव मांगे थे। उन्होने कहा कि उपराष्ट्रपति डाॅ. एम. वैंकेया नायडू, जो पंजाब विश्वविद्यालय के वाईस चांसलर थे, ने फरवरी 2020 में अपने सीनेट यां सिंडिकेट से एक भी सदस्य मनोनीत किए बिना 11 सदस्यीय उच्च स्तरीय कमेटी (एचएलसी)का गठन किया था। उन्होने कहा कि कमेटी ने पंजीकृत स्नातक हलके को समाप्त करने और वीसी द्वारा मनोनीत किए जाने वाले चार सदस्यों के साथ प्रतिस्थापन के अलावा पंजाब े 200 से अधिक काॅलेजों को असंबद्ध करने वाले विश्वविद्यानय के क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार में कमी करने की सिफारिश की। ‘‘ इस हलके ने मूल रूप से कुल 15 में से अकेले पंजाब से आठ लोगों को भेजा। यह विश्वविद्यालय के संचालन से पंजाबियों के उन्मूलन का प्रतीक है ’’।
सरदार बादल ने कहा कि कमेटी की सिफारिशों में यह भी स्पष्ट किया गया है कि अब सभी शक्तियां पूर्व छात्रों के निर्वाचित प्रतिनिधियों के पास नही बल्कि आटोक्रेटिक वाईस चांसलर के पास होंगी। ‘‘ ‘‘विश्वविद्यालय से पंजाबियों का यह उन्मूलन एचएलसी द्वारा तीसरी सिफारिश के साथ सीलबद्ध किया गया जिसके अनुसार सिंडिकेट में निर्वाचित प्रतिनिधियों के बजाय केवल मनोनीत सदस्य होंगे’’। उन्होने कहा कि सिफारिशों ने अपने निर्वाचित सदस्यों के माध्यम से पंजाब के लोगों के प्रति अविश्वास प्रकट किया है। ‘‘ इससे उन्हे अपनी आवाज को अपमानजनक तरीके से राष्ट्रीय मुख्यधारा से बाहर निकालने के प्रयास दिखाई देते हैं’’।
सरदार बादल ने कहा कि पंजाबियों को इस बात का बेहद दुख है कि मध्यमार्गी पार्टियां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही इस तरह के पंजाब विरोधी और संघीय विरोधी हैं , इसीलिए राष्ट्र विरोधी कदमों के साथ मिलीभगत है ।’’ यह कोई हैरानी की बात नही है कि पंजाब में कांग्रेस सरकार ने इस मुददे पर चुप्पी बनाए रखी है तथा इस मामले में मौन सहमति हैं’’।
शिरोमणी अकाली दल ने राष्ट्रपति से इस संबंध में पंजाब विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों को व्यक्तिगत रूप से आग्रह किया कि शिरोमणी अकाली दल पंजाबी, पंजाबी तथा पंजाबियत को सरंक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए अथक संघर्ष छेड़ेगा तथा इस उददेश्य की उपलब्धि के लिए कोई भी कीमत अदा करेगा।