पंजाब यूनिवर्सिटी स्नातक स्तर पर पंजाबी को अनिवार्य विषय के रूप में ड्राप करने के फैसले को तुरंत वापिस ले : शिरोमणी अकाली दल
कहा कि इस फैसले का समर्थन करने वाले सिंडिकेट के सदस्य यूनिवर्सिटी निकाय के सदस्य बने रहने के लायक नही: डाॅ. दलजीत सिंह चीमा
चंडीगढ़/30मई(विश्व वार्ता): शिरोमणी अकाली दल ने आज पंजाब यूनिवर्सिटी से अपने सभी संबद्ध काॅलेजों में स्नातक स्तर पर अनिवार्य विषय के रूप में पंजाबी को हटाने के अपने फैसले को तुरंत वापिस लेने की अपील की तथा साथ ही चेतावनी देते हुए कहा कि पंजाबी अपनी मातृभाषा के साथ यह भेदभाव कतई बर्दाश्त नही करेगें।
यहां एक प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए अकाली दल के वरिष्ठ नेता डाॅ. दलजीत सिंह चीमा ने सिंडिकेट के खिलाफ कड़ा रूख अपनाया , जिन्होने स्नातक स्तर पर पंजाबी को अनिवार्य विषय के रूप में छोड़कर इसे पात्रता वृद्धि श्रेणी में स्थानांतरित करने का फैसला किया। उन्हेाने कहा, ‘‘ जिन सिंडिकेट के सदस्यों ने इस फैसले का समर्थन किया है वह यूनिवर्सिटी निकाय में बने रहने के लायक नही हैं’’। उन्होने वाईस चांसलर से इस फैसले को तुरंत वापिस लेने की अपील की है।
अकाली नेता ने पंजाब यूनिवर्सिटी के कर्मचारियों और छात्रों से इस पंजाबी विरोधी कदम को वापिस लेने के लिए प्रशासन पर जोर डालने की अपील करते हुए कहा, ‘‘ अगर ऐसा नही किया गया तो अकाली दल पंजाबियों की भावनाओं का सम्मान कर इस गलती को सुधारने के लिए मजबूर करने की पूरी कोशिश करेगा’’।
डाॅ. दलजीत सिंह चीमा ने इस बात पर हैरानी जताते हुए कहा कि यूनिवर्सिटी यह कदम कैसे उठा सकती है। उन्होने कहा, ‘‘ पंजाब यूनिवर्सिटी राज्य की राजधानी का हिस्सा है, जिसे पंजाब के गांवो को उजाड़कर बनाया गया है तथा पंजाब में 200 से अधिक काॅलेज विश्वविद्यालय से संबद्ध हैं। उन्होने कहा कि विश्वविद्यालय क्षेत्र की मातृभाषा के साथ भेदभाव नही कर सकता। उन्होने पूछा कि क्या छात्र अपनी मातृभाषा में कुशल बनने के लिए दूसरे राज्यों यां दूसरे देशों में जाएं?
डाॅ. चीमा ने यह भी बताया कि कैसे क्षेत्र की भाषा और संस्कृति का प्रचार पंजाबी यूनिवर्सिटी के संस्थापक सिद्धांतों में से एक था और कहा कि इस सिद्धांत से यूनिवर्सिटी को भटकना नही चाहिए। उन्होेने यह भी खुलासा किया कि कैसे पंजाब के पुनर्गठन के बाद हरियाणा और हिमाचल प्रदेश दोनों ने अपने काॅलेजों को पंजाब विश्वविद्यालय से मान्यता नही दी थी। उन्होने कहा कि पंजाब में काॅलेज यूनिवर्सिटी से जुड़े हुए हैं और पंजाब सरकार यूनिवर्सिटी को वाजिब फंड देती रही है। उन्होने कहा, ‘‘ यूनिवर्सिटी किसी भी तरह से अपने ही लोगों और राज्य को इस तरह का नुकसान नही पहुंचाने का सोच भी नही सकती’’।
डाॅ. चीमा ने पूरे घटनाक्रम को चंडीगढ़ पर पंजाब के दावे को कमजोर करने की साजिश का हिस्सा करार देते हुए कहा कि केंद्र शासित प्रदेश में एक के बाद एक ‘‘पंजाब और पंजाबी विरोधी फैसले दिए जा रहे हैं’’। उन्होने कहा कि यूनिवर्सिटी का यह फैसला केंद्र सरकार द्वारा आकाशवाणी चंडीगढ़ में पंजाबी बुलेटिन को समाप्त करने और इसे बनाने वाले कर्मचारियों को जालंधर स्थानांतरित करने के निर्णय के कुछ दिनों बाद अया है। उन्होने यह भी बताया कि कैसे पहले चंडीगढ़ पर पंजाब का अधिकार आधिकारिक कार्यों में पंजाबी का उपयोग नही करके और यहां तक कि शहर से पंजाबी भाषा के साइनबोर्ड हटाकर चंडीगढ़ पर पंजाब के अधिकार को कमजोर करने के लिए यह फैसले किए गए हैं।