सरदार सुखबीर सिंह बादल ने राष्ट्रपति से पुनर्विचार के लिए विधेयकों को वापिस भेजने का आग्रह किया
चंडीगढ़/20सितंबर: शिरोमणी अकाली दल ने आज भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद से आग्रह किया है कि वे किसानों की उपज मंडीकरण पर संसद द्वारा पारित विधेयकों पर अपनी मंजूरी की मुहर न लगाएं। मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि कृपया जरूरत की घड़ी में परेशान और मेहनत करने वाले किसानों, खेत मजूदरों (खेत मजदूरों), मंडी मजदूरों और दलितों के साथ खडे हों। वे शोषण का सामना कर रहे हैं और आप पर निर्भर हैं कि आप देश के सर्वोच्च कार्यकारी के रूप में अपने विवेक का प्रयोग करें और इन विधेयकों पर हस्ताक्षर न करके उनके बचाव में आएं ताकि अधिनियम पर अंतिम कार्रवाई न हो।सरदार सुखबीर सिंह बादल ने राष्ट्रपति से एक भावुक याचिका में कहा कि ‘इसमें नाकाम रहने पर गरीब और दलित और उनके आने वाली पीढ़ियां हमें कभी माफ नही करेंगी।
सरदार बादल ने राष्ट्रपति से अनुरोध किया है कि वे विधेयकों को पुनर्विचार के लिए संसद को भेजें ताके ‘अतिउत्साही जिद के क्षणभंगुर पल में लिए गए जल्दबाजी में लिए गए फैसले राष्ट्र की मानसिकता पर स्थायी निशान न छोड़ें और न ही किसानों, खेत और मंडी मजदूरों और दलितों के दीर्घकालिक महत्वपूर्ण हितों पर गहरा घाव पहुंचाएं।
राज्यसभा में आज विधेयक पारित होने के साथ ही ये अब राष्ट्रपति के पास उनके हस्ताक्षरों के लिए जाएंगे। उसके बाद ही ये विधेयक अधिनियम बन जाते हैं।
सरदार बादल ने कहा कि इसीलिए, अभी भी समय है कि इस निर्णय पर पुनर्विचार किया जाए ताकि पूरे देश के हितों को खासतौर पर इस महत्वपूर्ण मोड़ पर कोविड-19 महामारी के दर्दनाक प्रभाव से उबरने के लिए जब देश को अर्थव्यवस्था सामाजिक स्थिरता, शांति और सदभावना की आवश्यकता है।
सरदार बादल ने कहा कि संविधान के निर्माताओं ने उनके समक्ष लाए गए किसी भी कानून के सभी पहलूओं पर पूरी तरह विचार करने के बाद राष्ट्रपति के हस्तक्षेप के लिए यह प्रावधान किया गया है। राष्ट्रपति संसद से सरकार के किसी भी निर्णय पर राष्ट्रीय सहमति न बनने की स्थिति में अपने निर्णय पर पुनर्विचार और पुनरावलोकन के लिए कह सकते हैं। भारत के राष्ट्रपति के लिए के लिए उस निर्णय का प्रयोग करने की कभी अत्यावश्यकता नही है क्योंकि वर्तमान कानून देश की 80 फीसदी से अधिक आबादी के प्रत्यक्ष और शेष 20 फीसदी परोक्ष रूप से वर्तमान और भविष्य पर सवालिया निशान लगाता है। राष्ट्रपति अपने सर्वोतम बुद्धिमता का प्रयोग करें और संसद के दोनो सदनों से इन विधेयकों पर पुनर्विचार करने के लिए कहें। यह सारे देश के हित में बहुत महत्वपूर्ण है।
सरदार बादल ने कहा कि आज संसद में जो कुछ हुआ वे बेहद दुखी हैं। ‘लोकतंत्र बहुसंख्यक उत्पीड़न के बारे नही बल्कि परामर्श, सुलह और आम सहमति के बारे में है। आज की कार्यवाही में तीनों लोकतांत्रिक गुणों की अनदेखी की गई है। अकाली दिग्गज ने कहा कि इस विकृति को राष्ट्रपति के हस्तक्षेप से ही ठीक किया जा सकता है।