चंडीगढ़ । चण्डीगढ़ स्थित पीजीआई एमईआर (पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीच्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च) के एडवांस्ड कॉडियोलॉजी सेंटर (एसीसी) ने दिल के मरीजों के इलाज के क्षेत्र में दुनियाभर में अपनी धाक साबित की है। एसीसी के विभाग प्रमुख प्रो. (डॉ.) यशपॉल शर्मा ने आज अपनी टीम के साथ एक प्रेस वार्ता में यह खुलासा करते हुए बताया कि दुनिया भर में दिल से जुड़ी बीमारियों के कारण हो रही मौतों की तुलना में भारत में बहुत कम लोग मौत का शिकार होते हैं। इसमें पीजीआई का स्थान सबसे ऊपर है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2001 से एसीसी ने एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम के मरीजों में मृत्युदर कम करने के प्रयास शुरू किए थे जिसमें काफी हद तक सफलता मिली। उन्होंने बताया कि इसके तहत दिल के रोगों से ग्रसित उन मरीजों को भी इलाज के लिए दाखिल किया जाता था जिन्हें मधुमेह, वीपी व किडनी रोग आदि के साथ-साथ ज्यादा उम्र वाले मरीज भी होते थे। आमतौर पर ऐसे मरीजों को अन्य देशों में इलाज के लिए मनाही कर दी जाती है जबकि यहां इन्हें पर्याप्त इलाज दिया गया। बाहर के देशों में इन्हें इसलिए भी इलाज की सुविधा नहीं दी जाती क्योंकि इन्हें एक तो बीमा क्लेम नहीं मिलता व दूसरा इनके इलाज की पर्याप्त सुविधा का भी अभाव है।
प्रो. यशपॉल ने बताया कि हमने अपने मरीजों को एक रणनीतिक व समग्र सोच के साथ अस्पताल में इलाज दिया। कई बार तो बहुत ही गंभीर स्थित में पहुंच चुके मरीजों को भी तमाम परहेजों व सावधानियों के साथ इलाज दिया गया और इसके नतीजे बहुत ही उत्साहवर्धक रहे। उन्होंने बताया कि उनके व उनकी टीम के कड़ी मेहनत व कड़े निश्चय के साथ किए गए प्रयासों से मृत्यु दर में उल्खनीय कमी दर्ज की गई। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया में कोई भी भेदभाव नहीं किया गया चाहे कोई अमीर हो या गरीब या बहुत बुरी हालत में आया मरीज क्यों न हो।
प्रो. यशपॉल ने बताया कि वर्ष 2003 के बाद उन्होंने अपना सारा डाटा व प्रमाण मेडिकल लिटरेचर नेशन व अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों एवं संस्थान के अंदर ही आयोजित किए गए लेक्चर में प्रस्तुत किया। इसके अलावा वर्ष 2007 के बाद कॉडियोजेनिक शॉप व एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम्स (एसीएस) के चलन को देखने अध्ययन के लिए एक योजनाबद्ध रिसर्च एथिकल क्लीयरेंस के साथ शुरू की गई। शुरूआती तौर पर एसीएस पापुलेशन में वर्ष 2012 तक मृत्यु दर 16 प्रतिशत थी जो कि अब घटकर छह से सात प्रतिशत रह गई है जो कि एक उल्लेखनीय आंकड़ा है। इसी प्रकार कॉडियोजेनिक शॉप में मृत्यु दर 36 से 40 प्रतिशत थी जो अब 30 प्रतिशत तक आ गई है।
प्रो. यशपॉल ने बताया कि वे अपनी तमाम रिसर्च सामग्री के साथ कैलीफोर्निया में स्थित दुनिया के सर्वश्रेष्ठ कॉडियोलॉजी इंस्टीच्यूट कैडर्स-सिनाई मेडिकल सेंटर के प्रो. सी.थॉमस पीटर एवं अन्य प्रसिद्ध अस्पतालों के फैकल्टी मेम्बर्स से मिले व सभी ने उनकी मेहनत व मरीजों के प्रति उनकी देखभाल के नजरिए की खुले दिल से सराहना की व अपने अस्पतालों में भी इन्हीं रिसर्च व विधियों पर आधारित इलाज शुरू किया।
प्रो. यशपॉल ने बताया कि उनका लक्ष्य दुनिया भर में दिल के गंभीर रोगों से ग्रस्त मरीजों में मृत्यु दर में कमी लाना है। उन्होंने बताया कि इसके लिए वह पहले ही एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम व कॉडियोजेनिक शॉप वाले मरीजों हेतु एक मल्टी-सेंट्रिक नेशनल रजिस्ट्री शुरू कर चुके हैं। इसके जरिए वह पूरे देश में स्थित अस्पतालों के साथ अपने अनुभवों व अध्ययन को, सांझा करेंगे व अपने लक्ष्य की प्राप्ति करेंगे।
उन्होंने अपनी रिसर्च की एक उल्लेखनीय बात का खुलासा करते हुए बताया कि उन्होंने पाया कि दिल के मरीजों में होमोग्लोबिन कम होने से जान जाने का खतरा ज्यादा होता है इसलिए उन्होंने ऐसे मरीजों में होमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाकर उनका सफलतापूर्वक उपचार किया।
स्वस्थ दिल के लिए कुछ उपयोगी निर्देश
उन्होंने दिल के मरीजों हेतु व स्वस्थ दिल के लिए कुछ उपयोगी निर्देश भी बताए जिसके तहत एक सप्ताह में कम से कम से कम 150 मिनट तक शारीरिक व्यायाम करने, अध्यात्म एवं योगा आदि के जरिए अपने आसपास के माहौल को तनावमुक्त रखने, चीनी एवं चीनी से बने खाद्य पदार्थों का कम से कम सेवन करने, ताजे फल सब्जियां व संपूर्ण अनाज का अधिक सेवन करने, अच्छी क्वालिटी की हाई प्रोटीन डाइट का सेवन करने (ताकि होमोग्लोबिन का स्तर अच्छ रहे), बार बार इस्तेमाल किए गए तेल से बनी तैलीय वस्तुओं का इस्तेमाल न करने व नमक का भी प्रयोग बिल्कुल कम करने के सुझाव दिए।
उन्होंने धूम्रपान व शराब को बिल्कुल बंद करने, वजन को भी संतुलित रखने, पर्याप्त नींद लेने आदि के साथ-साथ दवाई को बिल्कुल भी मिस न करने की ताकीद की। उन्होंने बताया कि अगर तीन महीने की दवाई लिखते हैं तो मरीज को चार महीने की दवाई खरीदनी चाहिए क्योंकि खाना बेशक छूट जाए पर दवाई नहीं छूटनी चाहिए।