*👉🏻-सब्सिडी के इन्तजार में किसान फसलों, बीजों और दवाओं आदि के बिल रखे बैठे हैं संभाल कर-प्रो. बलजिंदर कौर*
*👉🏿-सी.सी.आई ने अभी तक नहीं की कपास की खरीद शुरू*
*चंडीगढ़ 4 अक्तूबर 2020*आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब की सीनियर नेता और विधायक प्रो. बलजिन्दर कौर ने कहा कि पंजाब के किसान मालवा क्षेत्र में कपास की फसल को कम से कम समर्थन मूल्य से कम दाम पर बेचने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि कॉटन निगम आफ इंडिया (सी.सी.आई.) ने अब तक इस की खरीद शुरू नहीं की। कपास के लिए कम से कम समर्थन मूल्य 5515 और 5725 प्रति क्विंटल तय किया गया है, परंतु इस को 4000 से 4500 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से खरीदा जा रहा है। वहीं व्यापारियों की ओर से फसल में नमी की मात्रा ज़्यादा होने का हवाला देकर कम भुगतान कर रहे हैं।
पार्टी हैडक्वाटर से जारी बयान के द्वारा प्रो. बलजिन्दर कौर ने कहा कि किसान अपनी पुत्रों की तरह पाली कपास की फसल को 4,960 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से बेचने के लिए मजबूर हैं जो कि एमएसपी की अपेक्षा बहुत कम है। किसान इतने कम दाम में कपास बेचने के लिए इस लिए भी मजबूर हैं, क्योंकि अभी तक कॉटन निगम आफ इंडिया ने खरीद शुरू नहीं की, इस लिए किसान के पास कपास को इतने कम कीमत पर बेचने के इलावा कोई ओर रास्ता नजर नहीं आता।
प्रो. बलजिन्दर कौर ने कहा कि केंद्र सरकार ने भले ही कपास का कम से कम समर्थन मूल्य 5515 और 5725 रुपए प्रति क्विंटल तय किया हुआ है, परन्तु त्रासदी यह है कि इस समय यह 4000 से 4500 रुपए तक बिक रहा है। किसानों का कहना है कि इसी कारण वह रवायती फसलें गेहूं और धान को पहल देने के लिए मजबूर हैं, क्योंकि सरकारी खरीद होने के कारण यह फसलें तय मूल्य पर बिकतीं हैं। हालांकि मोदी सरकार के नए खेती कानून के तहत इन दोनों फसलों को भी व्यापारियों के हाथों में सौंप देगी।
प्रो. बलजिन्दर कौर ने कहा कि मालवा क्षेत्र की मंडियों में कपास की फसल का दाम 4,000 रुपए से 5,000 रुपए ही मिल रहा है, जब कि केंद्र सरकार की ओर से लम्बे रेशे वाले कपास का भाव 5,825 रुपए और बीच वाले रेशे वाले कपास की कीमत 5500 से अधिक रुपए बताई गई है। सरकार ने किसानों को फसली विभिन्नता का ढिंढोरा पीटते धान की जगह मक्का, कपास, दालें और सब्जियां आदि बीजने की ओर उत्साहित किया, परन्तु इन फसलों की खरीद और मंडीकरन की ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया। नतीजा यह हुआ कि फसली विभिन्नता की तरफ चला पंजाब का किसान ओर भी बर्बादी की ओर धकेला गया। सरकार ने ऐलान किया था कि जो किसान धान की फसल को त्याग कर कम पानी की खप्त वाली दूसरी फसलें बीजेंगे, उनको अलग-अलग योजनाओं के अंतर्गत सहायता के तौर पर 5 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर (ढाई एकड़) सब्सिडी दी जाएगी। इस सब्सिडी के इन्तजार में किसान फसलों, बीजों और दवाओं आदि के बिल संभाल कर रखे हुए हैं और खेती विभाग के हाथों की ओर झांक रहे हैं।