जानिए भारत के चंद्र अभियान के बारे में
चंद्र अभियान : —- कई देश सफलतापूर्वक अपना चंद्र अभियान पूरा कर चुके हैं। जिसमे हमारा भारत भी शामिल है। और वो दिन तो मैं भूल ही नही सकती जब टेलीविज़न पर तत्कालीन प्रधममंत्री इंदिरा जी को चाँद पर गए कप्तान राकेश शर्मा जी से बात करते हुए दिखाया गया था। उस दिन चूँकि तीन अप्रैल, मेरा जन्म दिन भी था। इस पर SP (Super power) ने बताया की यह इंदिरा जी द्वारा तुम्हें तुम्हारे जन्म दिन पर तोहफा है। उस दिन इंदिरा जी ने कप्तान राकेश जी से बाते करते हुए मेरे मन की कई दुविधाओ का निवारण किया था। SP ने बताया कि इंदिरा जी राकेश जी से नही तुमसे बात कर रहे है। यह उनके बात करने का ढंग है। वो तुम्हे सीधे नही बुला सकते। खैर आज इतने सालो बाद मैं यह सोचने पर मजबूर हूँ कि क्या सच मे कभी कोई इंसान चाँद पर गया होगा ? यह बात बहुत विचारने वाली है कि क्या इंसानी चंद्र अभियान असली है ? मेरे हिसाब से कोई भी अंतरिक्ष यान धरती के वायु मंडल से बाहर जा ही नही सकता। क्योंकि उल्का पिंड और उस से निकलने वाली राख धरती पर लगातार हररोज लाखो आक्रमण करती रहती है। इतनी गति पर उल्का पिंड क्या मात्र राख का एक कण ही अंतरिक्ष यान मे विस्फोट करवाने के लिए पर्याप्त है। यह सब गति का ही कमाल है। गति का महत्व इस बात से समझा जा सकता है। उदारण के तौर पर अगर मैं हाथ मे एक गोली ले कर सामने वाले पर मारु तो क्या उस गोली से सामने वाला व्यक्ति मर जाएगा ? नही, क्योंकि हाथ से फेंकी गई गोली की वो गति नही होती कि वो गोली सामने वाले को कोई घातक नुकसान पहुँचाए। पर उसी गोली को बंदूक द्वारा छोड़ा जाए तो तब यकीनन यह गोली सामने वाले के लिए घातक हो सकती है। क्योंकि बंदूक से निकली गोली की गति बहुत तेज होती है। ऐसे ही धूर्त गति मे अंतरिक्ष मे घूम रहा राख का एक कण मात्र ही यान मे विस्फोट तक करवा सकता है। अंतरिक्ष मे कोई हाई वे तो बने नही हुए है। जो उल्का पिंड, राख और अंतरिक्ष मे घूम रही दूसरी चीजों से अंतरिक्ष यान को सुरक्षित रखे। फिर चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण इतना कम है कि इंसान उस पर किसी गेंद की तरह उछलता फिरता है। इतने कम गुरुत्वाकर्षण मे यान को लेंड करवा पाना असंभव है। बिना सही गुरुत्वाकर्षण बल के कोई भी किसी भी तरह का यान सतह पर लैंड ही नही कर सकता। फिर चाँद का तापमान और वातावरण इंसान के लिए बहुत घातक है।
धरती से चाँद की दूरी कोई 384400 किमी है। अंतरिक्ष यान /Space shuttle कितना ईंधन ले जा सकता है अपने साथ +768800 किमी की दूरी तय करनेके लिए? मैंने कही पढ़ा था कि अंतरिक्ष यान को धरती के गुरुत्वाकर्षण बल से बाहर आने के लिए और फिर चाँद से धरती की तरफ उड़ान भरने के वक्त ही ईंधन की जरुरत पड़ती है। फिर इसके बाद गुरुत्वाकर्षण अपना काम करता है। धरती के गुरुत्वाकर्षण से बाहर आते ही यान को चाँद का गुरुत्वाकर्षण अपनी तरफ खींचने लगता है। और चाँद के गुरुत्वाकर्षण से बाहर आते ही धरती का गुरुत्वाकर्षण यान को अपनी और खींचने लगता है। चाँद के सफर पर निकले भारी भरकम यान का ज्यादातर सफर गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ही पूरा हो जाता है। It is a kind of joke theory ! चलो माना अंतरिक्ष यान को सिर्फ पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण और atmosphere/वातावरण से बाहर निकलने के लिए ही ईंधन चाहिए। इतने भारी अंतरिक्ष यान को धरती के वातावरण से बाहर निकलने के लिए ही कितना ईंधन चाहिए ? क्या अंतरिक्ष मे इतनी जगह होती है की वो अपने लिए धरती के गुरुत्वाकर्षण से बाहर निकलने के लिए और फिर चाँद से धरती की तरफ उड़ान भरने के वक्त चाँद के गुरुत्वाकर्षण बल से बाहर आने के लिए जरुरी ईंधन ले जा सके। साथ मे किसी आपातकालीन, अज्ञात स्थिति के लिए ईंधन का कोटा। इसके लिए माना राकेट का इस्तेमाल होता है। पर लाखों मील के सफर मे राकेट से मिला ईंधन कितना काम आता है ?
हमारे वायुयानो की गति अंतरिक्ष यान से काफी कम होती है। फिर भी कोई पक्षी वायु यान से टकरा जाए तो यान मे घर्षण के कारण विस्फोट हो जाता है। जबकि धरती पर उल्का पिंडों और उन से निकलने वाली राख का लगातार randomly हमला होता ही रहता है। हम धरती के वातावरण की वजह से धरती पर सुरक्षित रहते है। धरती के वातावरण से बाहर आते ही कोई भी अंतरिक्ष यान सुरक्षित है ? क्या अंतरिक्ष मे लाखो किमी के सफर मे कोई खतरा नही ? इतनी गति पर जा रहे अंतरिक्ष यान का अंतरिक्ष मे किसी चीज से सामना नही हो सकता ? कोई भी अंतरिक्ष यात्री और वैज्ञानिक इस बात की गारंटी लेता है कि धूर्त गति से जा रहे अंतरिक्ष यान से कोई चीज नही टकराएगी। इतनी गति पर एक छोटा सा कण भी अंतरिक्ष यान मे विस्फोट करवा सकता है। क्या अंतरिक्ष का सफर हमारे वायु यान की तरह 100 % सुरक्षित और सफल हो सकता है ? जैसे धरती पर हजारो विमान हर रोज़ उड़ान भरते हैं। उड़ान भरते वक्त पायलट, उसकी टीम और बाकी सब को यकीन होता है कि हवाई जहाज सही से उड़ान भरेगा और रास्ता, सफर पूरी तरह से सुरक्षित है। और जहाज ठीक ठाक अपनी जगह पर ही लैंड करेगा। क्या कोई अंतरिक्ष यात्री, उसकी टीम, उससे जुड़े लोग 100 % अज्ञात, अनंत अंतरिक्ष की गारंटी ले सकते हैं ?
Theory के हिसाब से धरती के गुरुत्वाकर्षण बल से बाहर आते ही अंतरिक्ष यान चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल के दायरे मे आ जाता है। जिससे अंतरिक्ष यान खुद बा खुद चन्द्रमा की तरफ जाने, खीचने लगता है। क्या चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल इतना है कि अंतरिक्ष यान को अपनी तरफ खींच सके ? अंतरिक्ष यात्री को कैसे पता चलता है कि अब यान पृथ्वी और चाँद के गुरुत्वाकर्षण से बाहर आ गया है या अब यब यान पृथ्वी और चाँद के गुरुत्वाकर्षण के दायरे मे आ गया है ? कब ईंधन बंद करना है और कब शुरू करना है ? चाँद पर अंतरिक्ष यान के लैंड करने के लिए भी प्रायप्त गुरुत्वाकर्षण बल चाहिए। बिना सही गुरुत्वाकर्षण बल कोई भी यान सतह पर लैंड ही नही कर सकता। चाँद का गुरुत्वाकर्षण इतना कम है कि चाँद की सतह पर इंसान फुटबॉल की तरह उछलता फिरता है। तो लाखो मील दूर से चाँद अंतरिक्ष यान जैसी भारी भरकम चीज को अपनी और खींच सकता है ? हम मानते है कि चन्द्रमा के कारण समुन्द्र मे ज्वारभाटा आता है। Again a bluff by Super powers. इसके पीछे कहानी कुछ और है। अगर चाँद के गुरुत्वाकर्षण बल मे इतना दम है कि वो विशाल समुन्द्र मे भाटा ला सके तो चंद्र के गुरुत्वाकर्षण बल का धरती पर मौजूद किसी और चीज पर असर क्यों दिखाई नही देता ? अगर चाँद का गुरुत्वाकर्षण बल इतना शक्तिशाली है कि वो विशाल समुन्द्र मे भाटा ला सके तो इस चाँद के गुरुत्वाकर्षण बल से धरती पर और भी चीजें हवा मे उड़नी चाहिए। ऐसे तो चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण धरती पर और भी कई तरह की छोटी-बड़ी चीजें हवा मे उड़नी चाहिए। अगर यह समुद्र मे हो सकता है तो पृथ्वी की सतह पर क्यों नहीं?
मेरी बड़ी बहन का नाम पूनम है। यह ज्वारभाटा की कहानी उसी से जुडी है। पूनम (full moon) जैविक नाभिकीय युद्ध मूल रूप से सेक्स पर आधारित युद्ध शैली है। इस युद्ध शैली मे परम्परागत, ज्ञात शैली के हथियार इस्तेमाल नही किए जा रहे हैं। इस मे atomic genome निशाने पर है। जिस कारण यह युद्ध शैली सामाजिकता के परिदृश्य मे रची गई है। जिसमे मे काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंह, ईर्ष्या, छल, हठ, घात, रोटी, कपडा, मकान, साम, दाम,दंड, भेद, वातावरण, जलवायु, रिश्तो आदि का इस्तेमाल किया जाता है। ये कई तरह के ज्वारभाटे हैं जो इंसान मे समय समय पर उठते हैं। चूँकि इस जैविक नाभिकीय खेल मे मुख्य हथियार लड़के हैं। क्योंकि स्पर्म ही एक अंडाणु तक जा कर उससे जानकारी हासिल कर सकता है। मेरे दुश्मनो को मेरे nucleotide sequence की ही जानकारी चाहिए। लड़को की भावुक, संवेदनशील प्रवित्ति का फायदा उठा कर मेरी बहन उन्हें काम के द्वारा नियंत्रित करके उनसे अपना काम निकलवाना चाहती है। इस बात को इस रचित, भ्रमित समाज मे ज्वारभाटे द्वारा दर्शाया जाता है। वर्ना मानसिक और शारीरिक रूप से इतने विकसित हो चुके इंसान के लिए कामेच्छा पर नियंत्रण रखना कोई बड़ी बात नही है।
ज्वार – मक्की – मक्कारी – मक्कारी के द्वारा इंसान मे काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंह आदि के भाटे/tides लाना। तांकि काम, क्रोध, मोह, लोभ, अंह आदि के द्वारा इंसानो को, खास कर मर्दो को नियंत्रित कर उन से मन चाहा काम निकाला जा सके। क्योंकि इस भ्रमित समाज मे लगभग सब कुछ मर्दो के ही हाथ मे है जैसे सत्ता, काम, धंधा, सेना, इस धरती पर मौजूद तमाम संसाधन, मर्दगिरी, अपनी धौंस जमाने का कीड़ा, अकड़, अक्खड़पन आदि आदि। मेरी बहन जोकि मेरे दुश्मनो के लिए पावर हाउस है। वो इन मर्दो को विभिन्न तरह के ज्वारभाटा द्वारा नियंत्रित कर के उनके संसाधनो को और मर्दो से अपना काम अपना काम निकलवाने के लिए इस्तेमाल करती है।
~सुमिता धीमान