क्रमिक विकास इंसान और चींटियाँ ,जानिए कुछ तथ्यों के साथ -सुमिता धीमान
चंडीगढ, 19सितंबर (विश्ववार्ता) यहाँ हम इस पर विचार करते है कि क्रमिक विकास मे विकास करते करते हमारे साथ क्या मजाक हुआ। हम और ज्यादा विकसित हुए या हम पतन की गहराईयो मे समा गए ? हमे पराभौतिक शक्तियो द्वारा बहुत जबरदस्त अँधेरे, अज्ञान और भ्रम मे रखा गया है। अब यहाँ हम देखते है कि क्या हम क्रमिक विकास के सिद्दांत से विकसित हुए है ? क्या सच मे इंसानो मे क्रमिक विकास हुआ या पराभौतिक शक्तियो द्वारा हमे सिर्फ क्रमिक विकास और सब से ज्यादा विकसित होने का लॉलीपॉप ही पकड़ा दिया गया ?
क्रमिक विकास का सिद्दांत :— हर काम करने का कोई ना कोई सिद्दांत होता है। प्रकृति भी अपने हर काम मे नियमो और विनियमो (rules & regulations) का पूरा पूरा ध्यान रखती है। अगर हम अपने सौर मंडल को देखे तो हम जानेगे कि प्रकृति कितने सख्त नियमो पर चलती ओर कितनी सख्ताई से सब नियमो का पालन करती है। हम जानते है कि हर ग्रह, उपग्रह, कितनी सटीकता से अपने अपने पथो पर अपनी अपनी सटीक प्रचंड तीव्र रफ्तार से घूम रहे है। कही भी थोड़ी सी गल्ती किसी भी बहुत बड़ी आपदा का कारण हो सकती है। पर प्रकृति कभी भी अपने नियमो से नही फिरती। ठीक इसी तरह प्रकृति ने, क्रमिक विकास ने बन्दरो से इंसान बनाते समय कुछ नियमो का पालन किया। पर क्या क्रमिक विकास मे हुआ विकास सचमुच विकास कहलाएगा ? या फिर विकास की चकाचौंद मे इंसानो का ह्रास, अधोगति, अवनति, क्षय, पतन हुआ ? आइए जाने। क्रमिक विकास निम्नलिखित सिद्दान्तो पर हुआ :——
(1) सर्व पक्षिय विकास ( All round development) : — जब भी कोई विकास होगा वह सर्वपक्षिय होगा। जैविक नाभिकीय युद्ध और गुणिय युद्ध को ध्यान मे रखते हुए हम शरीर को चार भागो मे बांटेगे (1) शारीरिक स्तर (2) मानसिक स्तर ओर (3) योन स्तर (4) गुणिय स्तर (genetic level)। सर्वपक्षिय विकास का मतलब है कि जब भी कोई विकास होगा वह इन चारो स्तरो (1) शारीरिक स्तर (2) मानसिक स्तर ओर (3) योन स्तर (4) गुणिय स्तर पर एक साथ होगा। किसी एक या दो या फिर तीन स्तर पर हुआ विकास कोई मायने नही रखता। विकास जब भी होगा चारो स्तरो पर एक साथ होगा।
इसे एक बहुत ही साधारण सी उदाहरण से समझा जा सकता है। मान लो कि बन्दरो से इंसान मे क्रमिक विकास होते समय बंदरो के शारीरिक स्तर मे उनके हाथ, पाँव ओर स्वरतंत्री (vocal cords) या मुँह मे इतना विकास हो गया कि उनके हाथ या मुँह कोई भाषा लिख या बोल सके पर उनके मानसिक स्तर पर इतना विकास ना हो कि उनका दिमाग कोई भाषा का अविष्कार कर सके। दिमाग के पास कोई भाषा ही नही है। अगर उनका दिमाग कोई भाषा बनाएगा ही नही तो हाथ क्या भाषा लिखेगे ओर मुँह वा स्वरतंत्री क्या भाषा बोलेगे। इस तरह फिर सिर्फ शारीरिक स्तर पर हुआ विकास कोई मायने नही रखता। ऐसे ही ठीक आप मान लो कि बंदरो से इंसान बनते हुए मानसिक स्तर मे इतना विकास हो जाए कि वो किसी भाषा को ईजाद कर सके पर शारीरिक स्तर पर इतना विकास ना हो कि किसी भाषा को लिख या बोल सके। इजाद की गई भाषा उस प्राणी के दिमाग मे ही डिब्बा बंद हो रह जाएगी। वो उस भाषा को लिख कर या फिर बोल कर व्यक्त नही कर पाएगा। क्योंकि उसका शरीर इतना विकसित ही नही हुआ या काबिल ही नही कि वो दिमाग द्वारा तैयार की गई किसी भाषा को बोल कर या फिर लिख कर व्यक्त कर सके। तो इस तरह से सिर्फ मानसिक स्तर पर हुआ विकास भी किसी काम का नही। शरीरिक और मानसिक स्तर पर विकसित हुआ इंसान योन स्तर पर भी अपने विकास को प्रदर्शित करेगा। वह अपनी भावनाओ को नियंत्रित करने मे ओर कुशल, परिपक्व होगा। वो अपने हॉर्मोन को अच्छे से नियंत्रित और संचालित करे। ना कि उसके हॉर्मोन घड़ी घड़ी यत्र तत्र उसे नियंत्रित और संचालित करे। उसकी सज्जनता, सहनशीलता, साधुता, सौहाद्रता उसके व्यवहार, सोच समझ, आचरण मे भी दिखे। इच्छाओं का प्रचंड पाशविक पहलु मे विकास हो इंसान इंसान बने हैवान नही।
अब मान लो कि बंदरो से इंसान बनते हुए इतना विकास हो जाता है कि दिमाग कोई भाषा का ईजाद कर सके और हाथ और मुँह उस भाषा को लिख या बोल सके। और इंसान/प्राणी अपनी भावनाओ को और अच्छे तरीके से संचालित कर सके। अपनी इच्छाओ और इन्द्रियो पर उसका पूर्ण नही तो कम से कम अच्छे से नियंत्रण हो। बच्चे को आराम से, सुविधा से, बिना तकलीफ के, जोखिम के और कम समय अवधि के गर्भकाल मे जन्म दे सके। तो ये सब बदलाव तभी संभव होंगे जब गुणिय स्तर/genetic level पर भी बदलाव/विकास होगा।
क्योंकि अगर हम चाहते है कि विकसित हुआ गुण अगली पीढ़ी मे भी जाए तो यह तभी संभव है जब वो विकसित हुआ गुण गुणिय स्तर/genetic level पर भी विकसित हुआ हो। किसी भी विकसित हुए गुण का तभी फायदा है। जब वो पीढ़ी दर पीढ़ी चले। कोई भी विकसित हुआ गुण दूसरी पीढ़ी मे गुणों/genes द्वारा ही जाएगा। अगर विकसित हुआ गुण उस व्यक्ति की मौत के साथ ही खत्म हो जाए तो फिर उस विकास का कोई फायदा नही। कोई भी विकसित हुआ गुण तभी लाभदायक और सार्थक है। जब वो गुण पीढ़ी दर पीढ़ी चले। क्योंकि कोई भी गुण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी मे गुणों/genes के द्वारा ही जाता है। इसलिए इस क्रमिक विकास मे विकसित हुआ गुण गुणिय स्तर/genetic level पर भी कोड होना जरुरी है। इस तरह चारो स्त्रो पर एक साथ हुआ विकास ही विकास कहलाता है। एक, दो स्तर पर हुआ विकास का कोई फायदा नही होता।
जैसे कंप्यूटर से हम अगर कोई काम लेना चाहते है तो कंप्यूटर मे उस काम से संबंधित सॉफ्ट वेयर, प्रोग्राम हो तो तभी हम उस कंप्यूटर से वो मन चाहा काम ले सकते है। अगर किसी कंप्यूटर मे वो सॉफ्ट वेयर और प्रोग्राम नही है तो फिर हम उस कंप्यूटर से वो काम नही ले पाते। यही सब इंसानो और बाकी दूसरे जीव जन्तुओ और वनस्पति जगत के साथ होता है। मतलब कि जैसे भी गुण/gene इंसान के पास होंगे। वैसे ही अंग, अंग संचालन, हॉर्मोन, रसायन, मनोदशा, क्षमता, दायरा उस इंसान का होगा।
क्योंकि गुण/genes bio programmer है। हमारे गुण/genes ही हमारी शारीरिक, मानसिक और योन स्तर पर प्रोग्रामिंग करते है। जिस भी इंसान और प्राणी के पास जैसे गुण/genes होंगे। उस प्राणी और इंसान की वैसी ही शारीरिक, मानसिक और योन प्रोग्रामिंग/क्षमता, दायरा होगा। इसीलिए शारीरिक, मानसिक और योन स्तर पर कोई भी अगर बदलाव होता है तो इसका सीधा सा मतलब है कि वो बदलाव सब से पहले उसके गुणिय स्तर (Genes) पर हुआ है। गुणो/genes मे बदलाव हुए बिना कोई भी इंसानी शरीर मे बदलाव, विकास संभव ही नही है। Human body = hard ware & genes = soft ware. इसीलिए जब भी कोई बदलाव होगा तो चारो स्तरो पर एक साथ ही होगा। चारो स्तरो पर एक साथ हुआ बदलाव ही वास्तव मे विकास कहलाएगा।
यहाँ मेरा सीधा सा यह भी कहने का मतलब है कि मान लो अभी हम भारत मे है पर कभी हम अमेरिका गए हो तो हम जानते है कि हम किसी भी वक्त, कही भी उस याद को ताजा कर सकते है। मतलब कि भारत मे होते हुए भी झट हमारा दिमाग अमेरिका होगा। अब जरा सोचिए कि विकास का सिद्दांत क्या कहता है? जब भी कोई विकास होगा वो सर्वपक्षिय होगा। अगर हमारे दिमाग ने इतना विकास कर लिया है कि वह पलक झपकते ही अमेरिका हो तो हमारे शारीरिक ओर योन स्तर की भी यही गति होनी चाहिए। मेरे कहने का मतलब है कि हमारे शारीरिक, मानसिक ओर योन स्तर की एक सी गति होनी चाहिए। क्योंकि जब भी कोई विकास होगा तो वो शारीरिक, मानसिक, योन स्तर पर एक साथ होगा।
हम सब दिमाग की गति से तो वाकिफ है पर शारीरिक ओर योन स्तर की गति से नही। पलक झपकते ही हमारा दिमाग यहाँ जा सकता है, पलक झपकते ही हमारा शरीर भी वही जा सकता है। ठीक जैसे हमारे ऋषि मुनि ओर देवी देवता एक लोक से दूसरे लोक आते जाते थे। यह कोई सतयुग की बात नही। ऐसा सब मेरे खुद के साथ भी घटित हो चुका है। ऐसे ही हमारे योन स्तर की भी गति होनी चाहिए। बच्चे के बारे मे सोचा तो बच्चा सामने। ना कि औरतो को गाय, भैंस की तरह 9 -10 महीने लग जाए एक पूरी तरह से अपाहिज बच्चे को जन्म देने मे। वह बच्चा जो खाने पीने, उठने बैठने, पढ़ने लिखने, बोलने कुछ समझने आदि हर काम मे फिसड्डी। आखिर औरते गाय, भैंस से ज्यादा विकसित है ओर यह विकास गर्भकाल की समय अवधि और प्रसव पीड़ा मे भी दिखाई देना चाहिए। और यह क्रमिक विकास शैशव काल मे भी दिखना चाहिए। क्योंकि विकास सर्व पक्षीय होता है। जैसे एनाकोंडा के बच्चे, समुंद्री कछुए की एक जाति के बच्चे आदि पैदा होते ही बिना माँ बाप के संरक्षण के विकराल जंगल और विशाल समुन्द्र मे अपने दम पर रहना शुरू कर देते है। यहाँ तो इंसान के बच्चे को सरकार भी अठारह साल का हो जाने तक समझदार नही मानती !
अब गाय, घोड़ा, हाथी आदि के बच्चे पैदा होते ही चलना शुरू कर देते है। और इंसान के बच्चे कितनी देरी से, कितने अभ्यास, परेशानियो और यत्र तत्र गिरते पड़ते चलना शुरू करते है। क्या ये सब विकास मे आएगा इधर उधर गिरना ? हम यहाँ अब यह तर्क नही दे सकते कि गाय, हाथी, घोड़ा आदि के बच्चे चार पाँव पर होते है। इसीलिए गाय, हाथी, घोड़ा के बच्चे जन्म लेते ही संतुलन बनाना सीख लेते है। इंसान भी तो एक लम्बे क्रमिक विकास से गुजर कर आया है। लाखो करोडो साल के इतने लम्बे क्रमिक विकास मे क्या सीखा ? इंसान का विकास हुआ है तो ही इंसान चार से दो पाँवो पर आया है। अगर बच्चे को चलना सीखना ही पड़ा तो विकास कहाँ हुआ ? हंसना, रोना, देखने, सुनने, खाने, सांस लेने, हगने, मूतने जैसे काम बच्चा जन्म लेते ही शुरू कर देता है। इन कामो को करने के लिए कोई प्रशिक्षण और अभ्यास नही तो फिर चलने के लिए ही सीखने का यह प्रावधान, शर्त क्यों ? लाखो करोडो साल के इतने लम्बे क्रमिक विकास मे इंसान ने क्या सीखा ?
जैसे मोटर साइकिल पहले किक से शुरू होते थे। मोटर साइकिल मे विकास हुआ तो अब मोटर साइकिल कितने आराम से और सुविधा जनक ढंग से सिर्फ एक बटन दबाने से ऑटो स्टार्ट हो जाते है। कोई किक की, धक्के की जरुरत नही। विकास का मतलब ही आराम, सुविधा, कुशलता, पारंगत होना और स्वतः (automatic) काम का हो जाना होता है।
(2) अगला वंश सुधारो के साथ (Theory “Descent with modification” ): —- यह सिद्दांत कहता है कि हर पीढ़ी ने अपने मे सुधार कर के एक अगले बढिया वंश/पीढ़ी को जन्म दिया। बंदरो से इंसान रातो रात नही बन गए। यह एक लाखो, करोड़ो साल लम्बी प्रक्रिया थी। हर पीढ़ी मे कोई ना कोई सुधार हुआ। यह विकास का क्रम पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहा। जैसे पहले बंदर कुछ झुके हुए होते थे, उन्होंने अपने मे सुधार किया ओर उनसे अगला वंश सीधा खड़े होने लगा। इस क्रमिक विकास के दौरान हम वह गुण अपने मे एकत्रित/शामिल/जमा करते गए जो हमारे फायदे मे थे ओर उन गुणो को छोड़ते गए जो हमारे हित मे नही रह गए थे जैसे जब इंसानो ने सीधा खड़ा होना सीख लिया तो पूँछ तब बेमानी हो गई। मतलब कि पूँछ की कोई जरूरत नही थी तो यह क्रमिक विकास मे गायब हो गई। ऐसे ही इंसानो ने अपना खाने का ढंग बदला तो उपांत्र/वरमिफॉर्म अपेंडिक्स की कोई जरूरत नही थी। तो यह हमारे शरीर मे गैरकार्यात्मक (non functional) हो गई। हमारे हाथ, पैरो, दिमाग ओर शरीर की सरंचना मे जो जो विकास हुआ तो इन गुणो को हमने अपने मे संजो लिया। ओर इस तरह हर सुधार के साथ हर पीढ़ी सुधरती गई ओर आखिरकार, नतीजतन बंदरो से मानव का विकास हुआ। किसी पीढ़ी मे कोई विकास हुआ। किसी पीढ़ी मे कोई और विकास हुआ। और इस तरह मौजूदा आज का इंसान अस्तित्व मे आया।
अब इस बात को जांचने की जरूरत है कि सच मे क्रमिक विकास के दौरान बंदर इंसानो मे विकसित हुए या फिर और ज्यादा अविकसित प्राणी बन गए या महामानवो (super human) मे विकसित हुए ? मेरा विचार है कि करोड़ो साल लगा देने के बाद प्रकृति ओर क्रमिक विकास “साधारण मानव” जैसा शर्मसार, लज्जित परिणाम नही दे सकती। हाँ हम मानव शारीरिक, मानसिक ओर योन स्तर पर जिन खूबियो ओर खामियो के साथ है वह हमारे लिए सिर्फ और सिर्फ शर्म का ही विषय हो सकता है गर्व का नही। ओर प्रकृति इतना शर्मसार काम नही कर सकती।
यहाँ मैं एक उदाहरण देना चाहूँगी – “टेक्नोलॉजी” समय ओर अनुभव के साथ अपनी चरम अवस्था या रूप मे होती है। जैसे पहले जो कार बनी, उसकी रफ्तार 20 किमी/घ थी। फिर कार की रफ्तार 40 किमी/घ हुई। ओर धीरे धीरे कार बनाने की टेक्नालजी मे समय और अनुभव के साथ सुधार होता गया। अब तो आप को 500 किमी/घ की रफ्तार वाली भी कार मिल जाएगी।
इसी तरह प्राणी बनाना, तरह तरह के प्राणी बनाना प्रकृति का, क्रमिक विकास का काम है। क्रमिक विकास बंदरो से मानव बनाने मे ही नही हुआ बल्कि यह तब ही शुरू हो गया था जब यह पृथ्वी, चांद, तारे ओर सूरज अस्तित्व मे आए। प्रकृति ने, क्रमिक विकास ने बिल्कुल शुरुआत मे पृथ्वी, चांद, तारे और सूरज आदि बनाने मे कोई गल्ती नही की तो सब से आखिर के काम मे कैसे गल्ती कर सकती है ? सबसे पहले पृथ्वी, चांद, तारे और सूरज आदि अस्तित्व मे आए ओर प्रकृति ने, क्रमिक विकास ने हम मानवो को सब से आखिर मे बनाया। हमारे बाद अभी तक प्रकृति ने, क्रमिक विकास ने कोई ओर दूसरा प्राणी नही बनाया (अभी तक हम ऐसा ही जानते और मानते है)।
हम सब जानते है कि पृथ्वी, चांद, तारे आदि सब अपनी अपनी कक्षा मे, अपनी अपनी सटीक रफ्तार से घूम रहे है। अगर इनकी कक्षा मे, रफ्तार मे जरा सी भी गडबड़ हुई तो प्रलय आ सकता है। पर क्या अरबो सालो से प्रकृति ने इस काम मे कोई गल्ती की ? प्रकृति ने, क्रमिक विकास ने अनगिनत प्रकार के प्राणी ओर पेड़ पौधे बनाए है। उनको बनाने मे कोई गल्ती नही की तो प्रकृति वा क्रमिक विकास अपने करोड़ो सालो के तजुर्बे, अनुभव, समय के बल पर जो प्राणी बनाएगा क्या वह हम इंसानो जैसा खामियो से भरा हुआ होगा ?
तरह तरह के जीवन बनाना भगवान जी की, क्रमिक विकास की ओर प्रकृति की टैकनोलजी /प्रौद्योगिकी है। वह अपनी टेक्नालजी मे प्रवीण ना होगे? अब किसी को लगता है कि भगवन जी ने हमे और सारी सृष्टि को बनाया। किसी को लगता है कि इंसान और तमाम तरह का जीवन क्रमिक विकास के कारण अस्तित्व मे आए और किसी का मानना है कि जीवन प्रकृति ने उपजा है। जैसी भी जिसकी जो भी श्रदा है उचित है।
हम कंपनी की चीजे खरीदना पसंद करते है। क्योंकि कंपनी की चीजे बढ़िया होती है और ज्यादा चलती है। हम गोदरेज, सैमसंग, क्रॉम्पटन, टाटा आदि कंपनियो के उत्पादनो पर विश्वास करते है। ये कम्पनियाँ कब से उत्पादन के क्षेत्र मे है ? इन कंपनियो को अस्तित्व मे आए दशको या शताब्दी भर ही हुआ है। तो तब भी हम इन कंपनियो के उत्पादनो पर विश्वास करते है। तो भगवन जी की, प्रकृति की, क्रमिक विकास की प्राणी बनाने की कंपनी कितने हजारो सालो से अस्तित्व मे है। जो विभिन्न तरह तरह के जीवित उत्पाद (प्राणी और पेड़ पौधे) लगातार बनाई ही जा रही है। पता नही कितने उत्पाद भगवान जी के और प्रकृति के इस दुनिया मे आए और कितने ही उत्पाद समय के साथ लुप्त भी हो गए।
तब कही जा कर भगवान जी ने और प्रकृति ने इंसान को बनाया। भगवान जी, प्रकृति और क्रमिक विकास ने अरबो सालो के सृजन के अनुभव के बाद इंसान को बनाया। और यह भगवान जी और प्रकृति ने क्या बना डाला !!! इस क्रमिक विकास मे तो चींटियाँ भी हमसे अच्छी है। इस क्रमिक विकास मे हमे खाली पीली, फोकट मे सर्व श्रेष्ठ होने की तख्ती भर ही हमारे हाथ मे थमा दी गई है। वास्तव मे हम इस क्रमिक विकास मे और ज्याद विकसित नही हुए है। बल्कि इस क्रमिक विकास मे विकास के नाम पर हमसे वो वो सब छीन लिया गया। जो हमारे जीने के लिए अति आवश्यक था। और विकास नाम का लोल्लीपॉप हमे पकड़ा, हम मे जबरदस्त घातक कमियाँ भर दी गई। हम सर्वश्रेष्ठ इंसान तो चींटियो के भी स्तर के नही रहे। चींटियाँ तो पूरी तरह से आत्म निर्भर, आत्म कुशल या अपने आप के लिए पर्याप्त है। क्या ऐसा हम इंसानो के लिए कह सकते है ? आईए इस पर विचार करते है।
(1) अनुकूलन : — चींटियाँ हर तरह के मौसम से दो चार होना जानती है। हम इंसान ऐसा नही कर पाते। हर तरह के मौसम के साथ तो दो चार क्या होना ? हम तो किसी भी मौसम के साथ अनुकूलन स्थापित नही कर पाते। गर्मी हो तो गर्मी से परेशान, सर्दी हो तो सर्दी से परेशान, बारिश हो तो बारिश से परेशान, बर्फ पड़े तो बर्फ से परेशान, किसी मौसम मे एलर्जी से परेशान। हर तरह का मौसम हमारे लिए कोई ना कोई परेशानी, तकलीफ और बीमारी ही लाता है। हम चीटियो की तरह किसी भी मौसम मे सकून महसूस नही कर पाते। और ना ही चींटियो की तरह सर्दियो मे underground जीवन बिता सकते है।
अब अगला वंश सुधारो के साथ क्या कहता है ? यह अनुकूलन वाला गुण इस क्रमिक विकास मे चीटियो से इंसानो तक आते आते और ज्यादा विकसित हुआ या अविकसित ?! किसी भी जीव जंतु पर प्रजाति के लिए अपने अपने वातावरण से अनुकूलन स्थापित करना बहुत जरुरी होता है। तापमान एक ऐसा महत्वपूर्ण कारक है जो जीवन दे भी सकता है और ले भी सकता है।
ध्रुवो पर जीवन इसीलिए कायम है क्योंकि वहां पाए जाने वाले सील, पेंगुइन, सफेद भालू आदि वहां के अति उच्च (- 70) डिग्री तापमान से अनुकूलन स्थापित कर पाते है। सहारा आदि रेगिस्तान यहाँ पर गर्मियो का तापमान +48, +50, +54 तक चला जाता है। वहां पाए जाने वाले प्राणी, पेड़ पौधे, सूक्ष्मदर्शी वहां के इतने उच्च तापमान के साथ अनुकूलन स्थापित कर पाते है। तभी जीवित रह पाते है। क्या हम -70 और +50 मे जीवित रह पाएँगे ? पर हम से कम विकसित प्राणी यह काम अच्छे से कर पा रहे है।
अब क्रमिक विकास मे अनुकूलन का यह अति आवश्यक गुण हम इंसानो मे ओर ज्यादा विकसित हुआ या अविकसित हुआ ? हमे पराभौतिक शक्तियो द्वारा सम्मोहित कर यह समझा दिया गया कि हम गर्म खून वाले प्राणी है। पर वास्तव मे हमारे सारे ही लक्ष्ण ठन्डे खून वाले प्राणियो के है। वातावरण की गर्मी ओर सर्दी बढ़ने से हमारा शरीर भी बुरी तरह से गर्म या ठंडा पड़ना शुरू हो जाता है। किसी निर्जीव वस्तु या ठन्डे खून वाले प्राणियो की ही तरह। यह हमारा भ्रम है कि हम गर्म खून वाले प्राणी है।
(2) बढिया नक्शा नवीस : — चींटियाँ बिना किसी स्कूल, कॉलेज, आईटीआई, आई आई टी और यूनिवर्सिटी गए, बिना किसी वास्तु-कला अनुभव और आर्किटेक्चर की डिग्री के, बिना किसी भी और तरह के अनुभव के अपने घर की समस्या का समाधान करने मे आत्मनिर्भर, सक्ष्म होती है। इनका जीवन काल इतना छोटा होता है कि पढ़ाई लिखाई के लिए और किसी भी तरह के अनुभव लेने की बात ही नही उठती। फिर भी इन्हें पता होता है कि घर बनाने के लिए कौन सी जगह ठीक रहेगी। क्योंकि हर तरह की मिट्टी और जगह इनके घर बनाने के लिए उचित नही होती। फिर सिर्फ इतना ही नही यह अपने घर मे अलग अलग कामो के लिए अलग अलग चेंबर/कमरे बनाती है। इनके छोटे से दिमाग को पता होता है कि कौन सा कमरा बच्चो को पालने के लिए बनाया गया है, कौन से कमरे मे खाना रखना है, किस कमरे मे कूड़ा करकट रखना है और किस कमरे मे रानी होगी। इनके बनाए घर हर तरह के मौसम और हालातो का सामना करने के लायक होते है। इनके घरो मे वेंटिलेशन का पूरा पूरा ध्यान रखा होता है। पता नही कौन इन को ये सब बाते बताता, समझाता है ?
क्या हम किसी की मदद लिए बिना अपने लिए एक one BHK, two BHK, three BHK घर बना सकते है ठीक चींटियो की ही तरह ? हकीकत यह है कि किसी की मदद और औजारो की मदद के बिना तो हम ढंग की एक कुटिया तक नही बना सकते। जब कि घर हम इंसानो के लिए कितना जरुरी है। क्योंकि हम हर तरह के मौसम, बारिश, बर्फबारी, बाढ़, सूखे आदि मे दूसरे प्राणियो की तरह बाहर खुले मे नही रह सकते। पर चींटियाँ ऐसा कर लेती है। अपना घर बनाने मे पूर्णतः आत्म निर्भर होती है।
(3) मौसम का पूर्वानुमान : — हमारी तरह इनके पास बहुत शक्तिशाली कंप्यूटर्स भी नही होते जो इन्हें मौसमो के बारे मे जानकारी दे सके। पर फिर भी ना जाने कैसे इन्हें मौसम के मिजाज का पता चल जाता है। बारिश होने से पहले यह अपना भोजन इकट्ठा करने का कार्यक्रम बीच मे ही छोड़ अपने घरो मे वापिस चली जाती है। और इन्हें पता होता है कि कब ज्यादा ठण्ड पड़ने वाली है और जिस कारण ये पहले से ही अपने लिए खाना इकट्ठा करने का काम कर लेती है। कमाल है इन्हें मौसोमो की जानकारी होती है और हमे नही। बिना कैलेंडर के हमे कुछ भी समझ नही आएगा।
(4) सहज अनुभूति : — इन छोटे छोटे से अधने प्राणियो को कौन बताता है कि यह यह मौसम इनके लिए सही है ओर यह यह मौसम नही। जो यह विषम परिस्थितियो के लिए पहले से ही खाना इकट्ठा कर लेती है। क्या हम इंसानो के पास ऐसी सुविधा है ? क्या हमे पता होता है कि अब बाढ़ आएगी या सूखा पड़ेगा। जो हम पहले से ही कोई बंदोबस्त कर ले ? हमारा अति विकसित दिमाग और इन्द्रियाँ हमे कुछ भी नही बताती। और अभी इस पर हम खुद को अति विकसित होने का सम्मान खुद ही खुद को दे देते है !!!
(5) सूँघने की क्षमता : –— इन नदारद प्राणियो की सूँघने की क्षमता हम इंसानो से ज्यादा होती है। इन्हें पता चल जाता है कि बंद डिब्बे मे क्या है पर हमे नही। यह हम इंसानो का सर्व पक्षीय विकास हुआ है ?!
(6) थकावट : — इन्हें थकावट भी नही होती। यह सारे दिन और रात काम कर सकती है। क्या इंसान के पास ऐसे कोल्हू के बैल की तरह बिना थके, बिना रुके काम करने का प्रावधान है ?
(7) रात्रि दृष्टि :— यह रात को भी बड़े आराम से काम कर लेती है। इन्हें कोई परेशानी नही होती। हम इंसान तो ढंग से दिन के समय भी नही देख पाते। थोड़ी सी दूर पड़ी वस्तु, सूक्ष्मदर्शी हम नही देख पाते और समय के साथ चश्मा तो तकरीबन हर किसी को लग ही जाता है।
(8) गर्मी और लू :— यह भरी दोपहर मे भी बड़े आराम से काम कर लेती है। इन्हें गर्म जमीन से कोई नुक्सान नही होता। इनके पैर नही जलते और ना ही बदन को गर्मी और लू लगती है। और यही गर्मी हम इंसानो को हा हा कार करने पर मजबूर कर देती है।
(9) प्रकृतिक जैविक हथियार : — क्रमिक विकास के ग्राफ मे मिले स्थान के हिसाब से इनके पास बहुत ही अच्छे प्राकृतिक जैविक हथियार (natural biological weapons) होते है। खतरे मे, जरूरत पड़ने पर यह सब से ज्यादा विकसित इंसान की भी काट कर बस करवा देती है। क्या इस क्रमिक विकास मे हमे कोई प्राकृतिक जैविक हथियार मिला है ?
(10) हिम्मत : — इंसान ओर चींटी के साइज और भार की तुलना करने पर पता चलता है कि हम इनसे बहुत ही बड़े और अति विकसित प्राणी है पर फिर भी यह इंसानो को काटने की हिम्मत कर लेती है। हम इंसान बिल्ली, चूहो, शेर और हाथी आदि को काट सकते है ? अगर काटे भी तो कितना नुक्सान पहुँचा सकते है ?
हम इंसान तो बंदरो से ही विकसित हो कर बंदरो से ही डर रहे है ! क्या कोई क्लास वन अफसर किसी क्लास फोर से डरेगा ? जी बिल्कुल क्रमिक विकास के ग्राफ मे इंसान क्लास वन की पोजीशन पर है और बाकी सब जीव जंतु और पेड़ पौधे क्लास फोर की पोजीशन पर है। बन्दर तो बहुत दूर की बात है। हम तो एक कोशिका वाले बैक्टीरिया, वायरस से भी डरते है। बात सिर्फ यही खत्म नही होती। हम तो साधारण से तत्वो, योगिको और रसायनो से भी डरते है। हमारी तो कार्बन, चीनी, नमक ही बस करवा देते है और कभी कभी तो इंसान की मौत की भी वजह बन जाते है। और गनीमत तो इस पर यह है कि हम खुद को अति विकसित मानते है।
(11) भार उठाने की क्षमता : — चींटियाँ अपने भार से 50 X ज्यादा भार उठा लेती है ओर हम अपने शरीर के वजन के हिसाब से कितना ज्यादा भार उठा सकते है ? जब कि अपनी शारीरिक बनावट और बोध के कारण हमे कई ऐसे ऐसे रोजमर्रा की जिंदगी मे काम करने पड़ते है। जिनमे इंसान को भार उठाने की जरुरत पड़ती है। क्या यह गुण भी क्रमिक विकास को हमारे लिए जरुरी नही लगा जो हम से छीन लिया ?!
(12) योग्यता : — इनके पास मिट्टी खोदने के लिए बहुत ही उत्तम जैविक औजार होते है। पर हम इंसानो के पास ऐसा भी कोई जैविक औजार नही है। हम सख्त मिट्टी को जरा भी नही खोद सकते पर यह चींटियाँ झट से यह काम कर लेती है। हमे मिट्टी खोदने जैसे मामूली से काम के लिए भी औजारो की जरूरत पड़ेगी। हमे प्रकृति की तरफ से या क्रमिक विकास मे कोई ऐसा कारगर जैविक औजार मिला है जो जरुरत पड़ने पर हमारी मदद कर सके ?
(13) गुरुत्वाकर्षण बल : –— यह बहुत ही आराम से गुरुत्व आकर्षण के बल से बाहर निकल जाती है पर हम इंसान इस बल से बाहर निकलना नही जानते। यह इस बल से बाहर आ जाती है तभी यह दीवार पर ओर छत पर चढ पाती है। पर हम इंसान ऐसा नही कर पाते। अपनी इसी अक्षमता के कारण हम गिरते है। जिस की वजह से हम गंभीर चोटिल होते है, कभी कभी कोई अंग गवा देते है या फिर कभी कभी मर भी जाते है। अपनी इसी अक्षमता के कारण हम उड़ भी नही पाते। क्या क्रमिक विकास ने यह सुविधा भी हमारे लिए उचित नही समझी ?
(14) अंधेरे मे देखने की योग्यता : — चींटियाँ बड़े ही आराम से अपने भूमिगत/अंडर ग्राउंड घरो मे बिना बिजली के सब कुछ साफ साफ देख लेती है। क्या हम किसी भूमिगत बंद घर मे कुछ साफ देख सकते है ?
(15) ऑल राउंडर : — बिना हमारी तरह विकसित हाथ, पाँव ओर दिमाग के, बिना पढ़ाई लिखाई के यह अपने सारे काम बहुत ही सुचारू ढंग से करने मे सक्षम है। यह अपने बच्चो की बहुत ही अच्छे ढंग से देख भाल करती है। इंसान को सब तरह की समझ और बोध होने के बावजूद भी इंसानो के और डॉक्टर के बच्चे कई कई तरह की बीमारियाँ और परेशानियो से ग्रस्त रहते है।
(16) प्रजनन तंत्र :— इन्हें प्रजनन के मामले मे कोई परेशानी नही होती पर हम इंसानो को इस से जुड़ी कितनी परेशानी होती है। अभी हमारे गुण/genes बहुत ही बढिया है। पर बहुत ही निक्कमा काम करते है। कभी बच्चा ही नही होता, कभी हो जाए तो बच्चा ही जीवित नही रहता ओर ढेर सारे पंगे, पर चींटियो का जीवन बहुत ही सुचारू रूप से, शान्ति से चलता है। पर हमारा सब से ज्यादा विकसित शरीर, दिमाग हमे कोई ना कोई परेशानी से ही ग्रस्त रखता है।
(17) गति – अपने नन्हे से शारीरिक आकार के बावजूद चीटियो की गति बहुत तेज होती है। क्रमिक विकास मे मिले स्थान के हिसाब से हमारी गति अति शोचनीय है। क्योंकि क्रमिक विकास मे हमे जो गति मिली है जरुरत पड़ने पर यह गति हमारी कोई मदद नही कर पाती। यह गति विपता मे, जरुरत मे, बाढ़, बर्फबारी, भूस्खलन, आग, शेर, हाथी, कुत्ता आदि से मुकाबला हो जाने पर हमारी कोई मदद नही करती। क्रमिक विकास मे हमारी गति की यह दुर्गति हो गई !! और उस पर भी और ताज्जुब की बात यह है कि हम इस पर भी खुद को अति विकसित कहते है। कहते है कि जीवन की शुरुआत पानी से हुई। कई मछलियो की तैरने की गति सौ किमी/घंटा है। क्रमिक विकास मे यह गति और भी सुधरनी चाहिए थी। पर मछलियो, शेर, चीतो, घोड़ो और कुत्तो से क्रमिक विकास मे यह गति हम इंसानो तक आते आते किस स्तर की हो गई !!! क्या यह सब विकास मे आएगा ?
(18 ) शारीरिक और मानसिक क्षमता: —– चींटियो के मुकाबले अति विकसित हाथ, पैर, दिमाग पा कर भी हमने क्या उखाड़ लिया ? हम कतई भी आत्मनिर्भर नही है। हमे पग पग पर औरो की सहायता की जरुरत पड़ती है। ये जो कुछ मशीने, औजार, वाहन, एसी, कूलर, हीटर, बल्ब, घर, विभिन्न तरह के गर्मी सर्दी और बारिश के वस्त्र, दवाईयाँ, ऑपरेशन, टेलीफोन, चश्मा, सुनने की मशीन, बैसाखियाँ, नकली अंग, नकली दाँत, इत्र, ब्यूटी सोप, मौसम के हिसाब से गर्म और ठन्डे खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ, नोट बुक आदि आदि इंसानो ने बनाए है। ये इंसानी दिमाग और शरीर की क्षमता और योग्यता को तो दर्शाते है, प्रमाण है। पर अगर हमे पग पग पर इन सब का इस्तेमाल करना पड़े और इन सब चीजो के बिना हमारा जीना संभव ही ना हो तो ये सब हमारे अपंग होने की निशानी है ना कि सब से ज्यादा विकसित होने के पुख्ता सबूत।
भावनात्मक पहलू – चींटियों का भावनात्मक पहलू उनके बोध के हिसाब से है। हम बौद्धिक स्तर पर चींटियों से कही ज्यादा विकसित है। अगर हम भावनात्मक और बौद्धिक स्तर पर चींटियों से बेहतर है तो क्या हम भावनात्मक स्तर पर खुद को अच्छे से संभाल लेते है ? नही बिल्कुल भी नही। हम छोटी छोटी बातो पर बहुत बहुत भावुक, विचलित, उदास, खिन्न, अवसादग्रस्त हो जाते है। हर तरह की परिस्थिति का ज्ञान होने के बावजूद हम खुद को भावनात्मक स्तर पर मजबूत नही रख पाते।
हम अपंग किसे कहते है ? वह व्यक्ति जो अपने शारीरिक स्तर और मानसित स्तर के कारण कोई काम अच्छे से ना कर पाए। क्या हम अपने दिमाग और शरीर के कारण अच्छे से सब काम कर पा रहे है ? क्रमिक विकास मे biologically हम और ज्यादा विकसित नही बल्कि पतन की गहराईयो मे चले गए। जो काम हम नही कर पा रहे या अच्छे से नही कर पा रहे। वही काम हम से कम विकसित प्राणी बहुत अच्छे से कर रहे है। जैसे अनुकूलन, देखना, सुनना, चलना और दौड़ने की गति, भार उठाना, प्रतिरक्षात्मक प्रणाली, पाचन तंत्र, लचीलापन और स्फूर्ति, जैविक नाभिकीय हथियार आदि आदि।
गुणिय कारक/genetic factor – सिर्फ उदहारण के तौर पर अगर हम मानते है कि जीवन का विकास चार चरणो मे हुआ। पहले चरण मे प्राणी 1 के पास दो गुण/gene थे। ये दो गुण उसे दो तरह के काम करने की सुविधा देते थे। प्राणी 1 मे क्रमिक विकास हुआ और वो विकसित हो कर प्राणी 2 बन गया। वो पहले से ज्यादा निपुण, सक्ष्म, दक्ष हो गया। क्योंकि विकास का यही मतलब होता है। और ज्यादा अच्छा, निपुण, दक्ष बनना। क्योंकि क्रमिक विकास मे उसे दो गुण/genes और मिल गए। अब दूसरे चरण मे पहुँचे प्राणी 2 के पास चार गुण/genes है। दो गुण प्राणी 1 के और दो गुण/genes जो उसने क्रमिक विकास मे हासिल किए। प्राणी दो वो काम भी कर सकता है। जो काम प्राणी 1 करता था। क्योंकि उसके पास प्राणी 1 के भी गुण है। और क्रमिक विकास मे हासिल किए अपने दो नए गुण/genes और भी है। और प्राणी 2 वो काम भी कर सकता है। जो काम उसके नए हासिल किए गुण/genes कर सकते है। ऐसे ही प्राणी 2 मे फिर क्रमिक विकास हुआ और अगला प्राणी 3 अस्तित्व मे आया। अब प्राणी 3 के पास छः गुण/genes है। चार गुण प्राणी 2 के और दो गुण और उसने क्रमिक विकास से प्राप्त किए। इस तरह प्राणी 3 छः काम कर सकता है। फिर प्राणी 3 मे क्रमिक विकास हुआ और अगला प्राणी 4 वजूद मे आया। अब इसके पास आठ गुण/genes है। यानि प्राणी 4 आठ तरह के काम कर सकता है। प्राणी 4 के पास छः गुण/genes प्राणी 3 के है और दो गुण/genes उसने क्रमिक विकास मे हासिल किए। यह आनुवंशिक स्वरूप (genetic pattern) है।
ड्रोसोफिला मेलानोगास्टर के पास सिर्फ चार गुणसूत्र/chromosome होते है। वो भी तकरीबन वो ही सब काम करती है। जो हम करते है। और इंसानो के पास 23 गुणसूत्र होते है। इतने सारे अतिरिक्त गुणसूत्र हमे कौन सा अधिक सक्ष्म बना देते है ? हम भी अपने ढंग से चलना फिरना, खाना, सांस लेना, बोलना, लिखना पढ़ना, प्रजनन आदि कार्य करते है। हम अपने कुल कुल गुणो/genes का दो प्रतिशत से भी कम इस्तेमाल करते है। हमारे 98.5 % गुण/genes निष्क्रिय रहते है।
हम इंसानो को अब यह सोचना शुरू कर देना चाहिए कि हम इस क्रमिक विकास मे विकास करते करते कहाँ पहुँच गए है ? इन करोड़ो सालो के विकास मे हमने क्या क्या हासिल किया ओर क्या क्या खोया ? हम इस क्रमिक विकास मे सिर्फ मूर्ख ओर अपंग बन कर ही रह गए है। जो कोई भी अति जरुरी काम सही ढंग से नही कर पाते। इस क्रमिक विकास मे हमारा biologically बहुत बुरी तरह से पतन हुआ है।
क्योंकि हम प्राकृतिक तौर से क्रमिक विकास मे विकसित हुए प्राणी नही है। हमे जैविक नाभिकीय युद्ध की जरूरतो और उद्देश्यो के हिसाब से पराभौतिक शक्तियो ने विशेष तौर से रचा और गढ़ा है। हम क्रमिक विकास के कारण नही जैविक नाभिकीय युद्ध के कारण अपने इस वजूद मे आए है। क्रमिक विकास कदापि इंसान को बनाने मे गल्तियाँ नही कर सकता। अगर हमे क्रमिक विकास ने बनाया होता तो हम जैसी प्रजाति चार पाँच पीढ़ियो तक भी ना चल पाती। कुछ इंसान पहली गर्मी मे ही भूख, प्यास, गर्मी, बीमारियाँ, जंगली जीवन की परेशानियो से ही मर जाते। कुछ सख्त जान बचते तो वो यक़ीनन सर्दी मे ठण्ड से मर जाते। चार पाँच पीढ़ियो तक इंसानी जात विलुप्त हो जाती।
हम अपनी बैसाखियो/accessories जैसे कि घर, खान, पान, कपड़े, पंखा, हीटर, दवा, टेक्नोलॉजी आदि के दम पर जीवित है ना कि चार्ल्स डार्विन के survival of the fittest सिद्धांत के कारण। अगर किसी व्यक्ति को बिना गर्म कपड़ो के अंटार्कटिक पर और बिना किसी शीतल पेयजल और खाद्य पदार्थ के रेगिस्तान मे छोड़ दो। जैसे कि इन जगहो पर और जीव जंतु, पेड़ पौधे और सूक्ष्मदर्शी रहते है। तो झट ही इन लोगो को अपने survival of the fittest होने का वहम समझ मे आ जाएगा। हम Natural selection तो क्या किसी भी ऐसी प्रतियोगिता मे शामिल होने तक को eligible नही है। हम अपनी बैसाखियो के दम पर जीवित है ना कि survival of the fittest or natural selection के दम पर।