सिंधु जल समझौता मामला: मोदी सरकार ने पाकिस्तान को भेजा नोटिस
कही ये बड़ी बात
जानें, क्या है सिंधु जल संधि का पूरा मामला ?
चंडीगढ़, 20 सिंतबर (विश्ववार्ता) भारत ने पड़ोसी देश पाकिस्तान को एक औपचारिक नोटिस भेजकर सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) की समीक्षा और संशोधन की मांग की है. इस नोटिस में ‘परिस्थितियों में मौलिक और अप्रत्याशित बदलाव’ का हवाला दिया गया है. जिसके लिए दायित्वों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता है. बता दें कि सन्, 1960 में भारत-पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित सिंधु जल संधि के तहत, तीन नदियों- रावी, सतलुज और ब्यास का औसत लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (एमएएफ) पानी विशेष उपयोग के लिए भारत को आवंटित किया गया था. पश्चिमी नदियों- सिंधु, झेलम और चिनाब का औसतन लगभग 135 एमएएफ पानी पाकिस्तान को आवंटित किया गया था. इसमें भारत को कुछ घरेलू, गैर-उपभोग्य और कृषि उपयोग के पानी के इस्तेमाल की अनुमति है।
क्यों भारत चाहता है संधि में बदलाव?
भारत का कहना है कि जब यह समझौता हुआ था, तब की स्थिति अब नहीं है। देश की जनसंख्या बढ़ गई है, खेती के तरीके बदल गए हैं और हमें पानी का इस्तेमाल ऊर्जा बनाने के लिए भी करना है। जम्मू-कश्मीर में लगातार सीमा पार से आतंकवाद इस संधि के सुचारू संचालन में बाधा पहुंचा रहा है। इस वजह से भी इस समझौते पर फिर से विचार करने की जरूरत है।
इस साल, 30 अगस्त को पाकिस्तान को दिए गए नोटिस में, भारत ने इस बात पर प्रकाश डाला कि, आईडब्लूटी के अनुच्छेद XII (3) के तहत, इसके प्रावधान को समय-समय पर दोनों सरकारों के बीच उस उद्देश्य के लिए संपन्न विधिवत संधि द्वारा संशोधित किया जा सकता है. भारत की आधिकारिक अधिसूचना में संधि के विभिन्न अनुच्छेदों के तहत दायित्वों के पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता पर बल दिया गया है. भारत का मानना है कि परिस्थितियों में मूलभूत और अप्रत्याशित परिवर्तन हुए हैं।
सिंधु जल संधि पर 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षर किए गए थे, जिसमें विश्व बैंक भी एक हस्ताक्षरकर्ता था। इस संधि का उद्देश्य दोनों देशों के बीच जल वितरण पर सहयोग और जानकारी का आदान-प्रदान करना है। भारत ने नोटिस में कुछ प्रमुख चिंताओं का उल्लेख किया है, जैसे जनसंख्या परिवर्तन, पर्यावरणीय मुद्दे और स्वच्छ ऊर्जा के विकास की आवश्यकता। इसके अलावा, पाकिस्तान में निरंतर आतंकवाद के प्रभाव को भी समीक्षा का एक कारण बताया गया है।