अर्थ: (हे मेरी जिंदे!) जिस ने तुझे (संसार में) भेजा है, उसी ने तुझे अपनी तरफ प्रेरणा शुरू की हुई है, तूँ आनंद से आत्मिक अडोलता से हृदय-घर में टिकी रह। हे जिन्दे! आत्मिक अडोलता की रोह में, आनंद खुशी पैदा करने वाले हरी-गुण गाया कर (इस प्रकारकामादिक वैरियों पर) अटल राज कर ॥१॥ मेरे मित्र (मन!) (अब) तूँ हृदय-घर में टिका रह (आ जा)। परमत्मा ने आप ही (कामादिक) तेरे वैरी दूर कर दिए हैं, (कामादिक से पड़ रही मार की) बिपता (अब) ख़त्म हो गई है ॥ रहाउ ॥ (हे मेरी जिन्दे!) सब कुछ कर सकने वाले प्रभू ने उनके अंदर उस ने अपना आप प्रगट कर दिया, उनकी भटकने ख़त्म हो गई। खसम-प्रभू ने उनके ऊपर मेहर की, उनके हृदय-घर में आत्मिक आनंद के (मानों) वाजे सदा के लिए वजने लग पड़ते हैं ॥२॥ (हे जिंदे!) गुरू के उपदेश पर चल के, गुरू के आसरे रह के, तूँ भी (कामादिक वैरियों के टाकरे पर) पक्के पैरों पर खड़ जा, देखी, अब कभी भी ना डोलीं। सारी सिृसटी में शोभा होगी, प्रभू की हजूरी मे तेरा मुँह उजला होगा ॥३॥ जिस प्रभू जी ने जीव पैदा किए हुए हैं, वह आप ही इन्हें (विकारों से) मोड़ता है, वह आप ही मददगार बनता है। हे नानक जी! सब कुछ कर सकने वालेे परमात्मा ने यह अनोखी खेल बना दी है, उस की वडियाई सदा कायम रहने वाली है ॥४॥४॥२८॥