पाठु पड़िओ अरु बेदु बीचारिओ निवलि भुअंगम साधे ॥ पंच जना सिउ संगु न छुटकिओ अधिक अह्मबुधि बाधे ॥१॥ पिआरे इन बिधि मिलणु न जाई मै कीए करम अनेका ॥ हारि परिओ सुआमी कै दुआरै दीजै बुधि बिबेका ॥ रहाउ ॥ मोनि भइओ करपाती रहिओ नगन फिरिओ बन माही ॥ तट तीरथ सभ धरती भ्रमिओ दुबिधा छुटकै नाही ॥२॥ मन कामना तीरथ जाइ बसिओ सिरि करवत धराए ॥ मन की मैलु न उतरै इह बिधि जे लख जतन कराए ॥३॥ कनिक कामिनी हैवर गैवर बहु बिधि दानु दातारा ॥ अंन बसत्र भूमि बहु अरपे नह मिलीऐ हरि दुआरा ॥४॥ पूजा अरचा बंदन डंडउत खटु करमा रतु रहता ॥ हउ हउ करत बंधन महि परिआ नह मिलीऐ इह जुगता ॥५॥ जोग सिध आसण चउरासीह ए भी करि करि रहिआ ॥ वडी आरजा फिरि फिरि जनमै हरि सिउ संगु न गहिआ ॥६॥ राज लीला राजन की रचना करिआ हुकमु अफारा ॥ सेज सोहनी चंदनु चोआ नरक घोर का दुआरा ॥७॥ हरि कीरति साधसंगति है सिरि करमन कै करमा ॥ कहु नानक तिसु भइओ परापति जिसु पुरब लिखे का लहना ॥८॥ तेरो सेवकु इह रंगि माता ॥ भइओ क्रिपालु दीन दुख भंजनु हरि हरि कीरतनि इहु मनु राता ॥ रहाउ दूजा ॥१॥३॥
☬ हिंदी में अर्थ ☬
राग सोरठि, घर २ में गुरू अर्जन देव जी की आठ-बंदों वाली बाणी।
अकाल पुरख एक है और सतिगुरू की कृपा द्वारा मिलता है।
हे भाई! कोई मनुष्य वेद (आदि धर्म-पुस्तक को) पढ़ता है और विचारता है। कोई मनुष्य निवली कर्म करता है, कोई कुंडलनी नाडी रस्ते प्राण चाड़ता है। (परन्तु इन साधनों से कामादिक) पांचों से साथ ख़त्म नहीं हो सकता। (बल्कि) ओर अहंकार में (मनुष्य) बंध जाता है ॥१॥ हे भाई! मेरे देखते हुए लोग अनेकों ही (निश्चित धार्मिक) कर्म करते हैं, परन्तु इन तरीकों से परमात्मा के चरणों में जुड़ा नहीं जा सकता।
हे भाई! मैं तो इन कर्मो का सहारा छोड़ कर मालक-प्रभू के दर पर आ गिरा हूँ (और बेनती करता रहता हूँ-हे प्रभू! मुझे भलाई और बुराई की) परख करने वाली अकल दो ॥ रहाउ ॥ हे भाई! कोई मनुष्य चुपी साधे बैठा है, कोई कर-पाती बन गया है (बर्तनों के स्थान पर अपने हाथ ही वरतता है), कोई जंगल में नंगा घूमता है। कोई मनुष्य सभी तीर्थों का चक्र लगा रहा है, कोई सारी धरती का भ्रमण कर रहा है, (परन्तु इस तरह भी) मन की अस्थिर हालत ख़त्म नहीं होती ॥२॥ हे भाई! कोई मनुष्य अपनी मनो-कामना अनुसार तीर्थों पर जा वसा है, (मुक्ति के चाहवान अपने) सिर पर (श़िव जी वाला) आरा रखाता है (और, अपने आप को चिरा लेता है)। परन्तु अगर कोई मनुष्य (इस तरह के) लाखों प्रयास करे, इस तरह भी मन की (विकारों की) मैल नहीं लहती ॥३॥ हे भाई! कोई मनुष्य सोना, स्त्री, अच्छे घोड़े, अच्छे हाथी (और इस तरह के) कई प्रकारों के दान करने वाला है। कोई मनुष्य अन्न दान करता है, कपड़ा दान करता है, जमीन दान करता है। (इस तरह भी) परमात्मा के द्वार पर पहुंच नहीं सकता ॥४॥
हे भाई! कोई मनुष्य देव-पूजा में, देवतों को नमस्कार डंडउत करने में, छ: कर्मों को करने में मस्त रहता है। परन्तु वह भी (इन बनाए हुए धार्मिक कर्मों को करने कर के अपने आप को धर्मी जान कर) अहंकार से करते करते (माया के मोह के) बंधनों में फंसा रहता है। इस प्रकार भी परमात्मा को नहीं मिल सकता ॥५॥ जोग-मत में सिद्धों के प्रसिद्ध चौरासी आसण हैं। यह आसण कर कर के भी मनुष्य थक जाता है। उम्र तो लंबी कर लेता है, पर इस तरह परमात्मा से मिलाप नहीं बनता, बार बार जन्मों के चक्र में पड़ा रहता है ॥६॥ हे भाई! कई ऐसे हैं जो राज-हकूमत के रंग-तमाशे मानते हैं, राजों वाले ठाठ-बाठ बनाते हैं, लोगों पर हुक्म चलाते हैं, कोई उनका हुक्म मोड़ नहीं सकता। सुंदर स्त्री की सेज मानते हैं, (अपने शरीर पर) चंदन और अतर वरतते हैं। पर यह सब कुछ तो भयानक नर्क की तरफ ले जान वाला है ॥७॥ हे भाई! साध संगत में बैठ कर परमात्मा की सिफ़त-सलाह करनी-यह काम ओर सभी कामों से उत्तम है। परन्तु नानक जी कहते हैं – यह अवसर उस मनुष्य को ही मिलता है जिस के माथे पर पूर्वले किए कार्यों के संस्कारों अनुसार लेख लिखा होता है ॥८॥ हे भाई! तेरा सेवक तेरी सिफ़त-सालाह के रंग में मस्त रहता है। दीनों के दुख दूर करने वाला परमात्मा जिस मनुष्य पर दयावान होता है, उस का यह मन परमात्मा की सिफ़त-सलाह के रंग में रंगा रहता है। रहाउ दूसरा ॥१॥३॥