अर्थ :-जब गोबिंद को, गुरु को सृष्टि के खसम को मिल गए, तब अब (कामादिक वैरीयो से हो रहे सहम से बचने के लिए) किसी ओर जगह (सहारा) खोजने की जरूरत ना रह गई।रहाउ। हे भाई ! नगर के पैंचाँ को मिल के (कामादिक वैरीयो से हो रहा) सहम दूर नहीं किया जा सकता। सरदारों लोकों से भी तस्सली नहीं मिल सकती (कि यह वैरी तंग नहीं करेगे) सरकारी हाकिम के आगे भी यह झगड़ा (पेश करने से कुछ नहीं बनता) भगवान पातिशाह को मिल के फैसला हो जाता है (और, कामादिक वैरीयो का भय खत्म हो जाता है)।1। हे भाई ! जब मनुख भगवान की हजूरी में पहुंचता है (चित् जोड़ता है), तब इस की (कामादिक वैरीयो के विरुध) सारी शिकैत खत्म हो जाती है।
तब मनुख वह वसत हासिल कर लेता है जो सदा इस की अपनी बनी रहती है, तब विकारों में फंस कर भटकने से बच जाता है।2। हे भाई ! भगवान की हजूरी में सदा कायम रहने वाले न्याय अनुसार (कामादिकाँ के साथ हो रही टकर का) फैसला हो जाता है। उस दरगाह में (जुल्मी का कोई लिहाज नहीं किया जाता) स्वामी नौकर एक जैसा समझा जाता है। हरेक के दिल की जानने वाला भगवान (हजूरी में पहुंचे हुए सवाली के दिल की) जानता है, (उस के) बोले बिना वह भगवान आप (उस के दिल की पीड़ा को) समझ लेता है।3। हे भाई ! भगवान सारे लोकों का स्वामी है, उस के साथ मिलाप-अवस्था में मनुख के अंदर भगवान की सिफ़त-सालाह की बाणी एक-रस पूरा प्रभाव डाल लेती है (और, मनुख ऊपर कामादिक वैरी अपना जोर नहीं पा सकते)। (पर, हे भाई ! उस को मिलने के लिए) उस के साथ कोई चलाकी नहीं की जा सकती। गुरु नानक जी कहते हैं, हे नानक ! (बोल-हे भाई ! अगर उस को मिलना है, तो) आपा-भाव गवा के (उस को) मिल।4।1।51।