हे भाई! परमात्मा हम जीवों के किए बुरे-कर्मो का कोई ध्यान नहीं करता। वह अपने मूढ़-कदीमा के (प्यार वाले) स्वभाव को याद रखता है, (वह, बल्कि, हमें गुरू मिला कर, हमें) अपना बना कर (अपने) हाथ दे कर (हमें विकारों से) बचाता है। (जिस बड़े-भाग्य वाले को गुरू मिल जाता है, वह) सदा ही आत्मिक आनंद मानता है ॥१॥ हे भाई! सदा कायम रहने वाला मालिक-प्रभू सदा दयावान रहता है, (कुकर्मो की तरफ़ बढ़ रहे मनुष्य को वह गुरू मिलाता है। जिस को पूरा गुरू मिल गया, उस के विकारों के रास्ते में) मेरे पूरे गुरू ने बंध लगा दिया (और, इस प्रकार उस के अंदर) सभी आत्मिक आनंद पैदा हो गए ॥ रहाउ ॥ हे भाई! जिस परमात्मा ने जिंद डाल कर (हमारा) शरीर पैदा किया है, जो (हर समय) हमें खुराक़ और पोशाक दे रहा है, वह परमात्मा (संसार-समुँद्र की विकारों वाली लहरों से) अपने सेवक की इज़्ज़त (गुरू मिला कर) आप बचाता है। हे नानक जी! (कहो-मैं उस परमात्मा से) सदा सदके जाता हूँ ॥२॥१६॥४४॥