धर्म : गूजरी महला ५॥ तूं समरथु सरनि को दाता दुख भंजनु सुख राइ ॥ जाहि कलेस मिटे भै भरमा निरमल गुण प्रभ गाइ ॥१॥ गोविंद तुझ बिनु अवरु न ठाउ ॥ करि किरपा पारब्रहम सुआमी जपी तुमारा नाउ ॥ रहाउ ॥ सतिगुर सेवि लगे हरि चरनी वडै भागि लिव लागी ॥ कवल प्रगास भए साधसंगे दुरमति बुधि तिआगी ॥२॥
अर्थ : हे प्रभु! तुन सभी ताकतों का मालिक है, तू सरन में आये को सहारा देने वाला है, तूं (जीवों के) दुःख दूर करने वाला है, और सुख देने वाला है। तेरे पवित्र गुण गा गा के जीवों के दुःख दूर हो जाते हैं, सरे डर भरम मिट जाते हैं।१। हे मेरे गोविन्द! तेरे बिना मेरा होर कोई आसरा नहीं है। हे परब्रह्म! हे स्वामी! (मेरे ऊपर) कृपा करो, मैं (सदा) तेरा नाम जपता रहूँ।१।रहाउ। हे भाई! जो मनुख बड़ी किस्मत से गुरु की सरन आ के प्रभु के चरणों में जुड़ते हैं, उनकी लगन (परमात्मा के) साथ लग जाती है, गुरु की संगत में रह के उनके ह्रदय-कमल खिल जाते हैं, वह बुरी बुद्धि त्याग देते हैं।