🙏🌹 हुकमनामा श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर 🙏🌹
सोरठि महला ९
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥
रे मन राम सिउ करि प्रीति ॥
स्रवन गोबिंद गुनु सुनउ
अरु गाउ रसना गीति ॥१॥ रहाउ ॥
करि साधसंगति सिमरु माधो
होहि पतित पुनीत ॥
कालु बिआलु जिउ परिओ डोलै
मुखु पसारे मीत ॥१॥
आजु कालि फुनि तोहि ग्रसि है
समझि राखउ चीति ॥
कहै नानकु रामु भजि लै
जातु अउसरु बीत ॥२॥१॥
अंग-६३१
सोरठि पातशाही नौवीं ।
वाहेगुरु केवल एक है और वह सच्चे गुरु द्वारा प्राप्त होता है।
हे (मेरे) मन! परमात्मा से प्यार बना। (हे भाई!) कानों से परमात्मा की उस्तति सुना कर, और, जीभ से परमात्मा (की सिफत सालाह) के गीत गाया कर। रहाउ।
हे भाई! गुरमुखों की संगत किया कर, परमात्मा का सिमरन करता रह। (सिमरन की बरकति से) विकारी भी पवित्र बन जाते हैं। हे मित्र! (इस काम में आलस ना कर, देख) मौत साँप की तरह मुँह खोल के घूम रही है।1।
हे भाई! अपने चिक्त में ये बात समझ ले कि (ये मौत) तुझे भी जल्दी ही हड़प कर लेगी। नानक (तुझे) कहता है– (अब अभी वक्त है) परमात्मा का भजन कर ले, ये वक्त गुजरता जा रहा है।2।1।