🙏🌹 हुकमनामा श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर🌹
🙏🌹 Hukamnama shri harimandir sahib ji 🙏🌹
सलोक मः ५ ॥ करि किरपा किरपाल आपे बखसि लै ॥ सदा सदा जपी तेरा नामु सतिगुर पाइ पै ॥ मन तन अंतरि वसु दूखा नासु होइ ॥ हथ देइ आपि रखु विआपै भउ न कोइ ॥ गुण गावा दिनु रैणि एतै कमि लाइ ॥ संत जना कै संगि हउमै रोगु जाइ ॥ सरब निरंतरि खसमु एको रवि रहिआ ॥ गुर परसादी सचु सचो सचु लहिआ ॥ दइआ करहु दइआल अपणी सिफति देहु ॥ दरसनु देखि निहाल नानक प्रीति एह ॥१॥
अर्थ: हे कृपालु (प्रभू)! मेहर कर, और तू स्वयं ही मुझे बख्श ले, सतिगुरू के चरणों में गिर के मैं सदा ही तेरा नाम जपता रहॅूँ। (हे कृपालु!) मेरे मन में तन में आ बस (ता कि) मेरे दुख समाप्त हो जाएं; तू स्वयं मुझे अपना हाथ दे के रख, कोई डर मुझ पर अपना जोर ना डाल सके। (हे कृपालु!) मुझे इसी काम में लगाए रख कि मैं दिन-रात तेरे गुण गाता रहूँ, गुरमुखों की संगति में रह के मेरा अहंकार का रोग काटा जाए। (हे भाई! भले ही) पति-प्रभू सब जीवों में एक रस व्यापक है, पर उस सदा-स्थिर रहने वाले प्रभू को जिसने पाया है गुरू की मेहर से पाया है। हे दयालु प्रभू! दया कर, मुझे अपनी सिफत-सालाह बख्श, (मुझ) नानक की यही तमन्ना है कि तेरे दर्शन करके प्रफुल्लित रहूँ।1