Amrit vele da Hukamnama Sri Darbar Sahib Sri Amritsar, Ang 706, 06-Jan.-2025
Hukamnama 06 January 2025 : सलोक ॥ कुटंब जतन करणं माइआ अनेक उदमह ॥ हरि भगति भाव हीणं नानक प्रभ बिसरत ते प्रेततह ॥१॥ तुटड़ीआ सा प्रीति जो लाई बिअंन सिउ ॥ नानक सची रीति सांई सेती रतिआ ॥२॥ पउड़ी ॥ जिसु बिसरत तनु भसम होइ कहते सभि प्रेतु ॥ खिनु ग्रिह महि बसन न देवही जिन सिउ सोई हेतु ॥ करि अनरथ दरबु संचिआ सो कारजि केतु ॥ जैसा बीजै सो लुणै करम इहु खेतु ॥ अकिरतघणा हरि विसरिआ जोनी भरमेतु ॥४॥
अर्थ :- मनुष्य अपने परिवार के लिए बहुत प्रयास करते हैं, माया के लिए बहुत कुछ करते हैं, लेकिन भगवान की भक्ति की लालसा से वंचित रहते हैं और हे नानक! जो प्राणी भगवान को भूल जाते हैं वे भूतों के समान (माने जाते हैं) 1. जो प्रेम (प्रभु को छोड़कर) किसी और से किया जाता है वह अंततः टूट जाता है। परन्तु हे नानक! यदि हम प्रभु के साथ रहेंगे, तो इस प्रकार का जीवन सदैव बना रहेगा।2. छंद (मनुष्य के) शरीर के अलग हो जाने से शरीर राख हो जाता है, सब लोग (उस शरीर को) अशुद्ध कहने लगते हैं; जिन रिश्तेदारों में इतना प्यार होता है वो उन्हें पलक झपकने के लिए भी घर में नहीं रहने देते. वह पाप करके धन संचय करता रहा, लेकिन वह जीवन किसी काम नहीं आया। यह शरीर (मानो) (इसमें) कर्मों से भरा हुआ है (कर्म-रूप बीज जो जैसा बोता है) वैसा ही काटता है। जो लोग (भगवान् के) किये हुए (उपकारों को) भूल जाते हैं, वे (अंत में) उन्हें भूल जाते हैं और गड्ढ़ों में भटकते हैं।।