सुही महला 1 घर 6 प्रभु सतीगुर प्रसादी उजालु कैहा चिलकाना घोतिम कालदी मसु धोती उतार कर कपडे न धोये 1. सजन सेई नालि माई चलदिया नालि चलन्हि॥ वो जहां-जहां हिसाब मांगता, वहीं खड़ा नजर आता. रहना कोठे मंडप मदिया पासाहु चितावियाहा॥ ॥॥ बागा बागे वस्त्र तीरथ मांझी वासनही। घुटी घुटी जिया खावने बागे न कहि अन्हीं॥3॥ सिमल रुखु सरिरु माई मैजन देहि भूलिनहि। से फल कामी न अवनहि ते गुना माई तनी हणहि अंधुलै भरु उथैया डोगर वाट बहुथु ॥ 5 काम नानक नामु समाली तू बधा छूटि जितु॥6॥1॥3॥
☬ का अर्थ ☬ है
राग सूही, घर 6 गुरु नानक देव जी की बानी
अकाल पुरख एक है और सतिगुरु की कृपा से मिलता है। मैंने साफ और चमकदार बर्तन पर थोड़ी सी काली स्याही लगा दी। अगर मैं धोऊं (साफ) उड वारी भी उस कोसे के उतवा (साफ) तो भी (भारों) सो जाओ उस की (अंदरली) अवशेष (चालिद) ॥॥ मेरे सच्चे दोस्त वे हैं जो (हमेशा) मेरे साथ रहते हैं, और जब भी मैं चलता हूं तो मेरे साथ चलते हैं, ताकि जहां (मेरे कर्मों का) हिसाब मांगा जाए, मैं खुलकर बता सकूं॥॥ रहनावे घर, मन्दिर और महल चित्रों से घिरे हुए हैं, परन्तु अन्दर से खाली हैं, (गिर जाते हैं और) किसी काम के नहीं रहते। बगुलों के पंख सफेद होते हैं, वे गर्मियों में भी तीर्थयात्रा पर रहते हैं। परन्तु जो प्राणी (कंठ) खाते हैं, वे (अंदर से) शुद्ध नहीं कहे जाते॥3॥(जैसे) चिन्ह का वृक्ष (वैसा है) मेरा शरीर है, (चिह्न के फल) देखकर तोते भ्रम खाते हैं, (चिह्न के) वे फल (तोते के) काम नहीं आते, वही गुण मेरे शरीर में हैं 4मुझे अँधे ने (सर पर अंधेरे का भारत है) हाय है है, (आगे मेरा जीवन-पुद्ध) एक बड़ी पहाड़ी सड़क है। यदि मैं अपनी आंखों से भी खोजूं तो भी मुझे रास्ता नहीं मिलता (क्योंकि आंखें ही नहीं हैं। ऐसी हालत में) मैं पहाड़ी पर कैसे चढ़ूं?5हे नानक! (पहाड़ी रास्तों की तरह जीवन के टूटे-फूटे रास्ते से गुजरना) दुनिया के लोगों की चापलूसी, दिखावा और चतुराई कोई काम नहीं आती। भगवान का नाम (अपने हृदय में) रखो। (माया के मोह में) बंधा हुव ॥इस नाम (-सिमरन) से तू मुक्त हो सकेगा (प्रेम के बंधन से) ॥6॥1॥3॥