☬ सोरठी महल 5☬ हमरी गणत न गनिया कै आपना बिरदु पचहनि॥ अपना हाथ पकड़ो, अपना हाथ रखो, हमेशा अपना रंग रखो 1. सच्चा साहिबु सद मिहरवां भाई, मेरी सतीगुड़ी पूरी हो गई, शुभकामनाएँ। रहना जिउ पि पिंडु जिनि सजिया दिता पन्नू खानु ॥ अपनि दास की आपि पैज राखि नानक दुख क़ुर्बनु ॥2॥16॥44॥
☬ का अर्थ ☬ है
अरे भइया! ईश्वर को मनुष्य द्वारा किये गये बुरे कर्मों की कोई परवाह नहीं है। वह अपने मूर्ख-जैसे (प्रेमपूर्ण) स्वभाव को याद करता है, (वह, बल्कि, हमें एक गुरु देता है, हमें अपना बनाता है) और (उसके) हाथ देता है (हमें विकारों से बचाता है)। (जिसको गुरु मिल जाता है उसे सदैव आध्यात्मिक आनंद की अनुभूति होती है)॥1॥ अरे भइया! नित्य-निरन्तर स्वामी-भगवान् सदैव दयालु होते हैं, (वह बुरे कर्मों की ओर बढ़ने वाले व्यक्ति को गुरु देते हैं। जिसे अपने विकारों के रास्ते पर पूर्ण गुरु मिल जाता है) मेरे पूरे गुरु ने बंधन लगा दिया (और) , यह (अध्याय उस के दर्शन) सभी आध्यात्मिक आनंद उत्पन्न हो गए हैं। रहना अरे भइया! जिस भगवान ने (हमारे) शरीर को जीवन दिया है, जो (हर समय) हमें भोजन और वस्त्र दे रहा है, वह भगवान (संसार के समुद्र की लहरों से) अपने सेवक की (गुरु के साथ) इज्जत बचाएगा हे नानक! (कहो-मैं उस परमेश्वर की ओर से हूँ) मैं सदैव सदके जाता हूँ ॥2॥16॥44॥