🌹अज्ज दा अमृत वेले दा हुकमनामा जी सचखंड श्री दरबार साहिब अंग:- 684🌹
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हे भाई! उस मनुष्य ने सदा-थिर हरी-नाम (की) खुराक़ खानी शुरू का दी उस को (माया की तृष्णा की तरफ़ से) शांति आ जाती है, जिस मनुष्य ने अपने मन में, हृदय में, जीभ से परमात्मा का नाम सिमरना शुरू का दिया ॥१॥ हे भाई! यही है असल जीवन, यही है असल जिंदगी! (कि) साध संगत में (बैठ कर) परमात्मा का नाम जपा करो ॥१॥ रहाउ ॥ उस मनुष्य ने (मानों) कई प्रकार के कपड़े पहन लिए हैं (और वह इन सुंदर पोशाकों का आनंद मान रहा है), जो मनुष्य हर समय परमात्मा की सिफ़त-सलाह करता है, प्रभू के गुण गाता है ॥२॥ हे भाई! वह मनुष्य (मानों) हाथी रथों घोड़ों की सवारी (का सुख मान रहा है) जो मनुष्य अपने हृदय में परमात्मा के मिलाप की राह देखता रहता है ॥३॥ जिस मनुष्य ने अपने मन में हृदय में परमात्मा के चरणों का ध्यान धरना शुरू कर दिया है, हे नानक जी! उस दास ने सुखों के ख़ज़ाने प्रभू को ख़ोज लिया है ॥४॥२॥५६॥
☬ “नानक नाम चडड़ी कला तेरे भाणे सरबत दा भला” “वाहिगुरू जी आप नूं हमेशा चड़दी कला विच रखन जी”