🙏🌹 हुकमनामा श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर 🙏🌹
🙏🌹 Hukamnama shri harimandir sahib ji 🙏🌹
धर्म : सोरठि महला १ ॥ जिन्ही सतिगुरु सेविआ पिआरे तिन्ह के साथ तरे ॥ तिन्हा ठाक न पाईऐ पिआरे अम्रित रसन हरे ॥ बूडे भारे भै बिना पिआरे तारे नदरि करे ॥१॥ भी तूहै सालाहणा पिआरे भी तेरी सालाह ॥ विणु बोहिथ भै डुबीऐ पिआरे कंधी पाए कहाह ॥१॥ रहाउ ॥ सालाही सालाहणा पिआरे दूजा अवरु न कोए ॥ मेरे प्रभ सालाहनि से भले पिआरे सबदि रते रंगु होए ॥ तिस की संगति जे मिलै पिआरे रसु लै ततु विलोए ॥२॥ पति परवाना साच का पिआरे नामु सचा नीसाणु ॥ आइआ लिखि लै जावणा पिआरे हुकमी हुकमु पछाणु ॥ गुर बिनु हुकमु न बूझीऐ पिआरे साचे साचा ताणु ॥३॥ हुकमै अंदरि निमिआ पिआरे हुकमै उदर मझारि ॥ हुकमै अंदरि जमिआ पिआरे ऊधउ सिर कै भारि ॥ गुरमुखि दरगह जाणीऐ पिआरे चलै कारज सारि ॥४॥ हुकमै अंदरि आइआ पिआरे हुकमे जादो जाए ॥ हुकमे बंन्हि चलाईऐ पिआरे मनमुखि लहै सजाए ॥ हुकमे सबदि पछाणीऐ पिआरे दरगह पैधा जाए ॥५॥ हुकमे गणत गणाईऐ पिआरे हुकमे हउमै दोए ॥ हुकमे भवै भवाईऐ पिआरे अवगणि मुठी रोए ॥ हुकमु सिञापै साह का पिआरे सचु मिलै वडिआई होए ॥६॥ आखणि अउखा आखीऐ पिआरे किउ सुणीऐ सचु नाउ ॥ जिन्ही सो सालाहिआ पिआरे हउ तिन्ह बलिहारै जाउ ॥ नाउ मिलै संतोखीआं पिआरे नदरी मेलि मिलाउ ॥७॥ काइआ कागदु जे थीऐ पिआरे मनु मसवाणी धारि ॥ ललता लेखणि सच की पिआरे हरि गुण लिखहु वीचारि ॥ धनु लेखारी नानका पिआरे साचु लिखै उरि धारि ॥८॥३॥
अर्थ : हे सज्जन प्रभू! सदा तुझे ही सलाहना चाहिए, हमेशा तेरी ही सिफत सालाह करनी चाहिए। (इस संसार-समुंद्र में से पार लांघने के लिए तेरी सिफत सालाह ही जीवों के लिए जहाज है, इस) जहाज के बिना भव-सागर में डूब जाते हैं। (कोई भी जीव समुंद्र का) दूसरा छोर ढूँढ नहीं सकता। रहाउ।जिन लोगों ने सतिगुरू का पल्ला पकड़ा है, हे सज्जन! उनके संगी-साथी भी पार लांघ जाते हैं। जिनकी जीभ परमात्मा का नाम-अमृत चखती है उनके (जीवन-यात्रा में विकार आदि की) रुकावटें नहीं पड़ती। हे सज्जन! जो लोग परमात्मा के डर-अदब से वंचित रहते हैं वे विकारों के भार से लादे जाते हैं और संसार समुंद्र में डूब जाते हैं। पर जब परमात्मा मेहर की निगाह करता है तो उनको भी पार लंघा लेता है।1।हे सज्जन! सलाहने योग्य परमात्मा की सिफत सालाह करनी चाहिए, उस जैसा और कोई नहीं है। जो लोग प्यारे प्रभू की सिफत सालाह करते हैं वे भाग्यशाली हैं। गुरू के शबद में गहरी लगन रखने वाले व्यक्ति को परमात्मा का प्रेम रंग चढ़ता है। ऐसे आदमी की संगति अगर (किसी को) प्राप्त हो जाए तो वह हरी नाम का रस लेता है। और (नाम-दूध को) मथ के वह जगत के मूल प्रभू में मिल जाता है।2।हे भाई! सदा स्थिर रहने वाले प्रभू का नाम प्रभू-पति को मिलने के लिए (इस जीवन-सफर में) राहदारी है, ये नाम सदा-स्थिर रहने वाली मेहर है। (प्रभू का यही हुकम है कि) जगत में जो भी आया है उसने (प्रभू को मिलने के लिए, ये नाम-रूपी राहदारी) लिख के अपने साथ ले जानी है। हे भाई! प्रभू की इस आज्ञा को समझ (पर इस हुकम को समझने के लिए गुरू की शरण पड़ना पड़ेगा) गुरू के बिना प्रभू का हुकम समझा नहीं जा सकता। हे भाई! (जो मनुष्य गुरू की शरण पड़ के समझ लेता है, विकारों का मुकाबला करने के लिए उसको) सदा-स्थिर प्रभू का बल हासिल हो जाता है।3।हे भाई! जीव परमात्मा के हुकम अनुसार (पहले) माता के गर्भ में ठहरता है, और माँ के पेट में (दस महीने निवास रखता है)। उल्टे सिर भार रह के प्रभू के हुकम अनुसार ही (फिर) जनम लेता है। (किसी खास जीवन उद्देश्य के लिए ही जीव जगत में आता है) जो जीव गुरू की शरण पड़ कर जीवन-उद्देश्य को सँवार के यहाँ से जाता है वही परमात्मा की हजूरी में आदर पाता है।4।हे सज्जन! परमात्मा की रजा के अनुसार ही जीव जगत में आता है, रजा के अनुसार ही यहाँ से चला जाता है। जो मनुष्य अपने मन के पीछे चलता है (और माया के मोह में फस जाता है) उसे प्रभू की रजा के अनुसार ही बाँध के (भाव, जबरदस्ती) यहाँ से रवाना किया जाता है (क्योंकि मोह के कारण वह इस माया को छोड़ना नहीं चाहता)। परमात्मा की रजा के अनुसार ही जिसने गुरू के शबद के द्वारा (जीवन-उद्देश्य को) पहचान लिया है वह परमात्मा की हजूरी में आदर सहित जाता है।5।हे भाई! परमात्मा की रजा के अनुसार ही (कहीं) माया की सोच सोची जा रही है, प्रभू की रजा में ही कहीं अहंकार व कहीं द्वैत है। प्रभू की रजा के अनुसार ही (कहीं कोई माया की खातिर) भटक रहा है, (कहीं कोई) जनम-मरन के चक्कर में डाला जा रहा है, कहीं पाप की ठॅगी हुई दुनिया (अपने दुख) रो रही है।जिस मनुष्य को शाह-प्रभू की रजा की समझ आ जाती है, उसे सदा-स्थिर रहने वाला प्रभू मिल जाता है, उसकी (लोक-परलोक में) उपमा होती है।6।हे भाई! (जगत में माया का प्रभाव इतना है कि) परमात्मा का सदा-स्थिर रहने वाला नाम सिमरना बड़ा कठिन हो रहा है, ना ही प्रभू-नाम सुना जा रहा है (माया के प्रभाव तले जीव नाम नहीं सिमरते, नाम नहीं सुनते)। हे भाई! मैं उन लोगों से कुर्बान जाता हूँ जिन्होंने प्रभू की सिफत सालाह की है। (मेरी यही प्रार्थना है कि उन की संगति में) मुझे भी नाम मिले और मेरा जीवन संतोषी हो जाए, मेहर की नज़र वाले प्रभू के चरणों में मैं जुड़ा रहूँ।7।हे भाई! हमारा शरीर कागज बन जाए, यदि मन को स्याही की दवात बना लें, यदि हमारी जीभ प्रभू की सिफत सालाह बनने के लिए कलम बन जाए, तो हे भाई! (सौभाग्य इसी बात में है कि) परमात्मा के गुणों को अपने विचार-मण्डल में ला के (अपने अंदर) उकरते चलो। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! वह लिखारी धन्य है जो सदा-स्थिर प्रभू के नाम को हृदय में टिका के (अपने अंदर) उकर लेता है।8।3।