<h2><img class="alignnone size-medium wp-image-14103" src="https://wishavwarta.in/hindi/wp-content/uploads/2024/09/dar-300x150.jpg" alt="" width="300" height="150" /></h2> <h2>🙏🌹 हुकमनामा श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर 🙏🌹</h2> <h2>🙏🌹<strong> Hukamnama shri harimandir sahib ji</strong> 🙏🌹</h2> <h3><span style="color: #800080;"><strong>धर्म : सलोकु मः ४ ॥ अंतरि अगिआनु भई मति मधिम सतिगुर की परतीति नाही ॥ अंदरि कपटु सभु कपटो करि जाणै कपटे खपहि खपाही ॥ सतिगुर का भाणा चिति न आवै आपणै सुआए फिराही ॥ किरपा करे जे आपणी ता नानक सबदि समाही ॥१॥मः ४ ॥ मनमुख माइआ मोहि विआपे दूजै भाए मनूआ थिरु नाहि ॥ अनदिनु जलत रहहि दिनु राती हउमै खपहि खपाहि ॥ अंतरि लोभु महा गुबारा तिन कै निकटि न कोई जाहि ॥ ओए आपि दुखी सुखु कबहू न पावहि जनमि मरहि मरि जाहि ॥ नानक बखसि लए प्रभु साचा जि गुर चरनी चितु लाहि ॥२॥पउड़ी ॥ संत भगत परवाणु जो प्रभि भाइआ ॥सेई बिचखण जंत जिनी हरि धिआइआ ॥ अम्रितु नामु निधानु भोजनु खाइआ ॥ संत जना की धूरि मसतकि लाइआ ॥ नानक भए पुनीत हरि तीरथि नाइआ ॥२६॥</strong></span></h3> <h3><span style="color: #800080;"><strong>अर्थ : (मनमुख के) हृदय में अज्ञान है, (उसकी) अक्ल होछी होती है और सतिगुरू पर उसे सिदक नहीं होता; मन में धोखा (होने के कारण संसार में भी) वह सारा धोखा ही धोखा बरतता समझता है। (मनमुख बंदे खुद) दुखी होते हैं (तथा औरों को) दुखी करते रहते हैं; सतिगुरू का हुकम उनके चिक्त में नहीं आता (भाव, भाणा नहीं मानते) और अपनी गरज़ के पीछे भटकते फिरते हैं; गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! अगर हरी अपनी मेहर करे, तो ही वह गुरू के शबद में लीन होते हैं।1।</strong></span></h3> <h3><span style="color: #800080;"><strong>माया के मोह में ग्रसित मनमुखों का मन माया के प्यार में एक जगह नहीं टिकता; हर वक्त दिन रात (माया में) जलते रहते हैं, अहंकार में आप दुखी होते हैं, औरों को दुखी करते हैं, उनके अंदर लोभ-रूपी बड़ा अंधेरा होता है, कोई मनुष्य उनके नजदीक नहीं फटकता, वह अपने आप ही दुखी रहते हैं, कभी सुखी नहीं होते, सदा पैदा होने मरने के चक्कर में पड़े रहते हैं। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! अगर वे गुरू के चरणों में चिक्त जोड़ें, तो सच्चा हरी उनको बख्श ले।2।</strong></span></h3> <h3><span style="color: #800080;"><strong>जो मनुष्य प्रभू को प्यारे हैं, वे संत जन हैं, भक्त हैं, वही कबूल हैं।वही मनुष्य विलक्ष्ण हैं जो हरी का नाम सिमरते हैं, आत्मिक जीवन देने वाला नाम खाजाना रूपी भोजन करते हैं, और संतों की चरण-धूड़ अपने माथे पर लगाते हैं। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! (ऐसे मनुष्य) हरी (के भजन रूप) तीर्थ में नहाते हैं और पवित्र हो जाते हैं।26।</strong></span></h3>