अर्थ :-हे (मेरे) मन ! सदा परमात्मा का नाम सुमिरन कर, सिफ़त-सालाह करा कर । (हे भाई !) गुरु की कृपा के साथ ही वह प्यारा भगवान मिल सकता है, जो आत्मिक जीवन देने वाला है, जो अपहुँच है, और, जो बहुत गहरा है ।रहाउ । हे भाई ! भगवान आप ही हर जगह मौजूद है (व्यापक होते हुए भी) भगवान आप ही निरलेप (भी) है । जगत-वणजारा भगवान आप ही है (जगत-बंजारे को रासि-पूँजी देने वाला भी) सदा कायम रहने वाला भगवान आप ही साहूकार है । भगवान आप ही वणज है, आप ही व्यापार करने वाला है, आप सदा-थिर रहने वाला सरमाया है ।1 । हे भाई ! भगवान आप ही (जीवों की अरदास) सुन के सब की संभाल करता है, आप ही मुक्ख से (जीवों को ढाढस देने के लिए) मीठा बोल बोलता है । प्यारा भगवान आप ही (जीवों को) कुराहे ड़ाल देता है, आप ही (जिंदगी का सही) मार्ग दिखाता है । हे भाई ! हर जगह भगवान आप ही आप है, (इतने खलजगन का स्वामी होता हुआ) भगवान बे-परवाह रहता है ।2 । हे भाई ! भगवान आप ही (सब जीवों को) पैदा करता है, आप ही हरेक जीव को माया के आहर में लगाए रखता है, भगवान आप ही (जीवों की) बणतर बनाता है, आप ही मारता है, (तो उस का पैदा किया जीव) मर जाता है । भगवान आप ही (संसार-नदी पर) पतण है, आप ही मलाह है, आप ही (जीवों को) पार निकालता है ।3 । हे भाई ! भगवान आप ही (संसार-) समुंद्र है, आप ही जहाज है, आप ही गुरु-मलाह हो के जहाज को चलाता है । भगवान आप ही (जहाज में) चड़ के पार निकलता है । भगवान-पातिशाह कौतक-तमाशे कर के आप ही (इतना तमाशों को) देख रहा है । हे नानक ! (बोल-) भगवान आप ही (सदा) दया का सोमा है, आप ही बख्शश कर के (अपने पैदा किये जीवों को अपने साथ) मिला लेता है ।4 ।1 ।