☬ ☬ ☬ गूजरी की वार महला ३ सिकंदर बिराहिम की वार की धुनी गाउणी
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ੴ सतिगुर प्रसादि॥ सलोकु मः ३ ॥ इहु जगतु ममता मुआ जीवण की बिधि नाहि ॥ गुर कै भाणै जो चलै तां जीवण पदवी पाहि ॥ ओइ सदा सदा जन जीवते जो हरि चरणी चितु लाहि ॥ नानक नदरी मनि वसै गुरमुखि सहजि समाहि ॥१॥ मः ३ ॥ अंदरि सहसा दुखु है आपै सिरि धंधै मार ॥ दूजै भाइ सुते कबहि न जागहि माइआ मोह पिआर ॥ नामु न चेतहि सबदु न वीचारहि इहु मनमुख का आचारु ॥ हरि नामु न पाइआ जनमु बिरथा गवाइआ नानक जमु मारि करे खुआर ॥२॥ पउड़ी ॥ आपणा आपु उपाइओनु तदहु होरु न कोई ॥ मता मसूरति आपि करे जो करे सु होई ॥ तदहु आकासु न पातालु है ना त्रै लोई ॥ तदहु आपे आपि निरंकारु है ना ओपति होई ॥ जिउ तिसु भावै तिवै करे तिसु बिनु अवरु न कोई ॥१॥
☬ विआखिआ ☬
ये जगत (भाव, हरेक जीव) (ये चीज ‘मेरी’ बन जाए, ये चीज ‘मेरी’ हो जाए- इस) अपनत्व में इतना फसा पड़ा है कि इसे जीने की जाच (विधि) नहीं रही। जो जो मनुष्य सतिगुरू के कहने पर चलता है वह जीवन-जुगति सीख लेता है। जो मनुष्य प्रभू के चरणों में चित्त जोड़ता है, वह समझो सदा ही जीते हैं, (क्योंकि) हे नानक! गुरू के सन्मुख रहने से मेहर का मालिक प्रभू मन में आ बसता है और गुरमुखि उस अवस्था में आ पहुँचते हैं जहाँ पदार्थों की ओर मन नहीं डोलता।1।जिन मनुष्यों का माया से मोह-प्यार है जो माया के प्यार में मस्त हो रहे हैं (इस गफ़लत में से) कभी जागते नहीं, उनके मन में संशय और कलेश टिका रहता है, उन्होंने दुनिया के झमेलों का ये खपाना अपने सिर पर लिया हुआ है। अपने मन के पीछे चलने वाले लोगों की रहणी ये है कि वे कभी गुर-शबद नहीं विचारते। हे नानक! उन्हें परमात्मा का नाम नसीब नहीं हुआ, वह जनम व्यर्थ गवाते हैं और जम उन्हें मार के ख्वार करता है (भाव, वे मौत से सदा सहमे रहते हैं)।2।जब प्रभू ने अपना आप (ही) पैदा किया हुआ था तब कोई और दूसरा नहीं था, सलाह-मश्वरा भी खुद ही करता था, जो करता था वह होता था। उस वक्त ना आकाश ना पाताल और ना ही ये तीनों लोक थे, कोई उत्पत्ति अभी नहीं हुई थी, आकार-रहित परमात्मा अभी खुद ही खुद था।जो प्रभू को भाता है वही करता है उसके बिना और कोई नहीं है।1।