हे नानक जी! जो प्रभू हमें मन-इच्छत दाताँ देता है जो सब जगह (सब जीवों की) उम्मीदें पूरी करता है, जो हमारे झगड़े और कलेश नाश करने वाला है उस को याद कर, वह तेरे से दूर नहीं है ॥१॥ जिस प्रभू की बरकत से तुम सभी आनंद मानते हो, उस से प्रीत जोड़। जिस प्रभू ने तेरा सुंदर शरीर बनाया है, हे नानक जी! रब कर के वह तुझे कभी भी ना भूले ॥२॥ (प्रभू ने तुझे) जिंद प्राण शरीर और धन दिया और स्वादिष्ट पदार्थ भोगने को दिए। तेरे अच्छे भाग्य बना कर, तुझे उस ने सुंदर घर, रथ और घोडे दिए। सब कुछ देने-वाले प्रभू ने तुझे पुत्र, पत्नी मित्र और नौकर दिए। उस प्रभू का सिमरन करने से मन तन खिड़ा रहता है, सभी दुख ख़त्म हो जाते हैं। (हे भाई!) सत्संग में उस हरी के गुण चेते किया करो, सभी रोग (उस का सिमरन करने से) नाश हो जाते हैं ॥३॥