रामकली महला ५ ॥ जो तिसु भावै सो थीआ ॥ सदा सदा हरि की सरणाई प्रभ बिनु नाही आन बीआ ॥१॥ रहाउ ॥ पुतु कलत्रु लखिमी दीसै इन महि किछू न संगि लीआ ॥ बिखै ठगउरी खाइ भुलाना माइआ मंदरु तिआगि गइआ ॥१॥ निंदा करि करि बहुतु विगूता गरभ जोनि महि किरति पइआ ॥ पुरब कमाणे छोडहि नाही जमदूति ग्रासिओ महा भइआ ॥२॥ बोलै झूठु कमावै अवरा त्रिसन न बूझै बहुतु हइआ ॥ असाध रोगु उपजिआ संत दूखनि देह बिनासी महा खइआ ॥३॥ जिनहि निवाजे तिन ही साजे आपे कीने संत जइआ ॥ नानक दास कंठि लाइ राखे करि किरपा पारब्रहम मइआ ॥४॥४४॥५५॥
अर्थ: हे भाई! जो कुछ प्रभू को अच्छा लगता है वही हो रहा है। (इस लिए) सदा ही उस प्रभू की शरण पड़ा रह। प्रभू के बिना कोई और दूसरा (कुछ करने के योग्य) नहीं है।1। रहाउ।
हे भाई! पुत्र, स्त्री, माया, ये जो कुछ भी दिखाई दे रहा है, इनमें से कुछ भी (अंत समय जीव) अपने साथ नहीं ले कर जाता। विष्य-विकारों की ठॅगबूटी खा कर के जीव गलत रास्ते पर पड़ा रहता है, आखिर में ये माया, ये सुंदर घर (सब कुछ) छोड़ के चला जाता है।1।
हे भाई! जीव दूसरों की निंदा कर कर के बहुत परेशान होता रहता है, और अपने इस किए कर्म अनुसार जनम-मरण के चक्र में जा फसता है। (ये स्वाभाविक असूल की बात है कि) पुर्व किए कर्मों के संस्कार जीव को छोड़ते नहीं हैं, और बहुत भयानक यमदूत इसे काबू में किए रखता है।2।