🙏🌹जैतसारी महला 4 घारू 1 चौपड़े ੴ सतीगुर प्रसादी जनम जनम के किलबिख दुख उतारे गुरि नामु देव रिनु लता ॥1॥ मेरे मन भजु राम नामु सभी अर्थ गुरि तथुलि हरि नामु दृदया बिनु नावै जीवनु बिरथा ॥ रहना बिनु गुर मूड बी है मनमुख ते मोहा मइया नित फटा। 3 साधु चरण न सेवे कबहु 3 सभु जनमु अकथा ॥2॥ जो लोग अपने कदमों, कदमों और कदमों में सफल हुए हैं, उनका जन्म और पालन-पोषण हुआ है। मो कौ की जय दासु दास दासन को हरि दइया धरि जगनाथा॥3॥ हम अंधुले गियानहिं अगियानि किउ चलह मार्गी पंथा॥ हम अंधुले कौ गुर आंचलु दिजै जन नानक चलह मिलंथा ॥4॥1॥
अर्थ: राग जैतसरी, घर १ में गुरु रामदास जी की चार-बन्दों वाली बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। (हे भाई! जब) गुरु ने मेरे सिर ऊपर अपना हाथ रखा, तो मेरे हिर्दय में परमात्मा का रतन (जैसा कीमती) नाम आ बसा। (हे भाई! जिस भी मनुख को) गुरु ने परमात्मा का नाम दिया, उस के अनकों जन्मों के पाप दुःख दूर हो गए, (उस के सिर से पापों का कर्ज) उतर गया।१। हे मेरे मन! (सदा) परमात्मा का नाम सुमिरन कर, (परमात्मा) सरे पदार्थ (देने वाला है)। (हे मन! गुरु की सरन में ही रह) पूरे गुरु ने (ही) परमात्मा का नाम (ह्रदय में) पक्का किया है। और, नाम के बिना मनुख जीवन व्यर्थ चला जाता है।रहाउ। हे भाई! जो मनुख अपने मन के पीछे चलते है वह गुरु ( की सरन) के बिना मुर्ख हुए रहते हैं, वह सदा माया के मोह में फसे रहते है। उन्होंने कभी भी गुरु का सहारा नहीं लिया, उनका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है।२। हे भाई! जो मनुष्य गुरू के चरणों की ओट लेते हैं, वे खसम वाले हो जाते हैं, उनकी जिंदगी कामयाब हो जाती है। हे हरी! हे जगत के नाथ! मेरे ऊपर कृपा कर के मुुुझे अपने दासों का दास बना ले।3।हे गुरू! हम माया में अंधे हो रहे हैं, हम आत्मिक जीवन की सूझ से वंचित हैं, हमें सही जीवन जुगति की सूझ नहीं है, हम तेरे बताए हुए जीवन मार्ग पर नहीं चल सकते। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! (कह–) हे गुरू! हम अंधों को अपना पल्ला (आंचल)पकड़ा दे, ताकि तेरा संग कर के हम तेरे बताए हुए रास्ते पर चल सकें।4।1