🙏🌹 हुकमनामा श्री हरमंदिर साहिब अमृतसर 🙏🌹
भगत रविदास जी द्वारा रागु सोरठी बानी
प्रभु सतीगुर प्रसादी
जौ हम बंधे मोह फस हम प्रेम बधनी तुम बढ़े॥ 1. माधव ऐसा ही जानता है। अब आप ऐसा कहेंगे॥1॥ रहना मछली को काट कर काट लीजिये और पका लीजिये. खण्ड खण्ड करि भोजनु कीनो तौ न बिसरियो पानी अपन बपै नहिं केसी को भवन को हरि राजा॥ मोह पाताल सबु जगतु बियापियो भगत नहिं संता॥3॥ कहि रविदास भगति इक फलेह अब इह का सिउ कहियै ॥ जा करनि हम तुम अरधे सो दुखु अजहु सहाई ॥4॥2॥
☬ का अर्थ ☬ है
राग सोरठी में भगत रविदास जी की बानी.
अकाल पुरख एक है और सतिगुरु की कृपा से मिलता है।
(तो, हे माधो!) अगर हम मोह के फाँदे में बहे हैं थे, तो है तुज्हे के प्रे प्रे की रासी। हम तो (उस मोह की फाँसी में से) ज़री प्रजा की फाँसी में से उसमर कर निकले हैं? 1 हे स्त्री! तेरे भगत जिसका प्यार तेरे भगत के साथ है। ऐसे प्रीत के होते, तुम उन्हें उनके प्यार से दूर जरूर रखते हो॥ रहना (हमारा प्यार आपके साथ है, मरने के बाद भी हम आपको नहीं भूलेंगे) मछली को (पानी से) पकड़ कर अलग कर लें, तोड़ कर कई बार उबाल लें, फिर टुकड़ों में काट लें, लेकिन वह मछली भी पानी की प्यासी है। जगत का मालिक हरि के पिता का (जन्म का स्वामित्व) है तो प्रेम का बंधन है (इस प्रेम से वंचित सारा संसार) प्रेम के आवरण में फँसा हुआ है, परन्तु भक्त (जो भगवान से प्रेम करते हैं) उन्हें (इस प्रेम से) कष्ट नहीं होता॥3॥ रविदास जी कहते हैं – (हे माधो!) मुझे तेरे प्रेम का (हृदय में) इतना विश्वास हो गया है कि अब मुझे किसी से बात करने की आवश्यकता नहीं है, मोह से बचने के लिए मैं तेरा जाप कर रहा हूँ, उस मोह का दु:ख जगाए तक सहराना है है (मतलब, उस मोह का त उब दर्द मेरा नाम निश्चिंत है ॥॥4॥2)