धनासरी महला ५ ॥ तुम दाते ठाकुर प्रतिपालक नाइक खसम हमारे ॥ निमख निमख तुम ही प्रतिपालहु हम बारिक तुमरे धारे ॥१॥ जिहवा एक कवन गुन कहीऐ ॥ बेसुमार बेअंत सुआमी तेरो अंतु न किन ही लहीऐ ॥१॥ रहाउ ॥ कोटि पराध हमारे खंडहु अनिक बिधी समझावहु ॥ हम अगिआन अलप मति थोरी तुम आपन बिरदु रखावहु ॥२॥ तुमरी सरणि तुमारी आसा तुम ही सजन सुहेले ॥ राखहु राखनहार दइआला नानक घर के गोले ॥३॥१२॥
☬ अर्थ ☬
हे प्रभू! तूँ सब दातें देने वाला हैं, तूँ मालिक हैं, तूँ सब को पालने वाला हैं, तूँ हमारा आगू हैं (जीवन-मार्ग दर्शन करने वाला हैं), तूँ हमारा खसम हैं। हे प्रभू! तूँ ही एक एक पल हमारी पालना करता हैं, हम (तेरे) बच्चे तेरे आसरे (जीवित) हैं ॥१॥ (मनुष्य की) एक जीभ से तेरा कौन कौन सा गुण बताया जाए ? हे अनगिनत गुणों के मालिक! हे बेअंत मालिक-प्रभू! किसी भी तरफ़ से तेरे गुणों का अंत नहीं खोजा जा सका ॥१॥ रहाउ ॥ हे प्रभू! तूँ हमारे करोड़ों अपराध नाश करता हैं, तूँ हमें अनेकों प्रकार से (जीवन-जाँच) समझाता हैं। हम जीव आत्मिक जीवन की सूझ से वंचित हैं, हमारी अक्ल थोड़ी है बेकार है। (फिर भी) तूँ अपना मूढ़-कदीमाँ का प्यार वाला स्वभाव कायम रखता है ॥२॥ हे प्रभू! हम तेरे ही आसरे हैं, हमें तेरी ही (मदद की) आस है, तूँ ही हमारा सज्जन हैं, तूँ ही हमें सुख देने वाला हैं। हे दयावान! हे सब की रक्षा करने वाले! हमारी रक्षा कर। हे नानक जी! (कहो-) हम तेरे घर के ग़ुलाम हैं ॥३॥१२॥