संयुक्त राष्ट्र में एक बार फिर इस्राइल-फलस्तीन विवाद पर भारत का रुख साफ
गाजा में मानवीय संकट पर भारत ने UN में जताई चिंता
चंडीगढ, 2 मई (विश्ववार्ता) भारत ने इजरायल और फिलिस्तीन के लिए दो राज्य समाधान के लिए नई दिल्ली प्रतिबद्धता को दोहराते हुए संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के लिए फिलिस्तीन के प्रयासों का समर्थन किया। संयुक्त राष्ट्र की एक बैठक में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने कहा, “भारत दो राज्य समाधान का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है, जहां फिलिस्तीनी लोग इजरायल की सुरक्षा जरूरतों को ध्यान में रखते हुए सुरक्षित सीमा के भीतर एक स्वतंत्र देश में स्वतंत्र रूप से रहने में सक्षम हैं।” भारत यमन में बिगड़ती राजनीतिक और सुरक्षा स्थिति को लेकर काफी चिंतित है। हम यमन में सभी संबंधित पक्षों से अपने मतभेदों को सौहार्दपूर्ण ढंग से हल करने का आग्रह कर रहे हैं और हमें उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के प्रयासों से यमन के लोगों को सर्वसम्मति-आधारित समाधान खोजने में मदद मिलेगी।
सीरिया की ओर रुख करते हुए, हम सीरिया में जारी हिंसा और मानव जीवन की हानि पर अपनी निरंतर चिंता व्यक्त करना चाहेंगे। भारत ने लगातार संकट के सभी पक्षों को बातचीत की मेज पर लाकर संकट के व्यापक और शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया है। इसे जिनेवा विज्ञप्ति 2012 के अनुरूप सीरिया के लोगों की वैध आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए सीरिया के नेतृत्व वाली प्रक्रिया होनी चाहिए। यहां कोई सैन्य समाधान नहीं हो सकता है।
इस स्थिति से उत्पन्न मानवीय संकट को प्रभावी ढंग से संबोधित करना होगा। इसी दृढ़ विश्वास के साथ हमने 2014 में संयुक्त राष्ट्र सीरियाई मानवीय प्रतिक्रिया योजना में 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया और 2015 में 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान दिया। हम सीरिया पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत श्री डे द्वारा किए गए प्रयासों के प्रति भी आशान्वित और समर्थित हैं। मिस्तुरा को विभिन्न मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए चार उप समूहों में समानांतर बातचीत करने की राजनीतिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाना है। हम सभी दलों से आग्रह करते हैं कि वे अपेक्षित राजनीतिक इच्छाशक्ति प्रदर्शित करें, संयम बरतें और अपने मतभेदों को दूर करने के लिए समान आधार तलाशने के लिए प्रतिबद्ध हों।
बता दें कि पिछले महीने अमेरिका ने फलस्तीन की इस मांग का विरोध किया था। रुचिरा कंबोज ने कहा कि ‘हमें उम्मीद है कि संयुक्त राष्ट्र में फलस्तीन की सदस्यता पर उचित समय पर पुनर्विचार किया जाएगा और संयुक्त राष्ट्र का सदस्य बनने के फलस्तीन के प्रयास को समर्थन मिलेगा।’ गौरतलब है कि साल 1974 में फलस्तीन मुक्ति संगठन को फलस्तीन के लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला भारत पहला गैर अरब देश था।