गर्मी में बच्चों के सेहत का रखे ध्यान, खाने-पीने में करे ये शामिल
सेहत का रखे ख्याल, जंक फूड व चीनी से करे तौबा
मासूम को भी इन वस्तुओं से रखे दूर, शोध से हुए चौंकाने वाले खुलासे
चंडीगढ, 29 मई (विश्ववार्ता) गर्मी आते ही माता पिता के सामने सबसे ज्यादा बच्चों की सेहत को लेकर चिंता रहती है. इस मौसम में बच्चों को न केवल लू लगने का डर रहता है, बल्कि सुस्ती, आलस जैसी समस्या आम बात है. हालांकि यह समस्या इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के साथ उचित, संतुलित और ऊर्जा प्रदान करने वाले आहार न लेने के कारण होता है. इसलिए गर्मी में बच्चों के आहार को लेकर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है. गर्मी का मौसम कई तरह की समस्याएं लेकर आता है. इन दिनों डिहाइड्रेशन, लू लगने का खतरा रहता है. जंक फूड में कार्बोहाइड्रेड की मात्रा अधिक होती है। जिससे वैक्ट्रैरिया कनेक्ट होते ही लैटिक एसिड बन जाता है। जोकि दांत का कैल्शियम को (डी कैल्शिफिकेशन ) कर देता है, जिससे दांत सॉफ्ट हो जाते है। खराब होना शुरू हो जाते है। चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक तीन में से एक बच्चा गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) से पीडि़त है. यह रोग मुख्य रूप से चीनी के अधिक सेवन के कारण होता है. 5-16 वर्ष की आयु के बच्चों में यह रोग एक चिंता का विषय बन गया है. पहले, बच्चों को लिवर रोग से सुरक्षित माना जाता था। केवल एक दशक में एनएएफएलडी से पीडि़त बच्चों की संख्या 10-33 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
चिकित्सा विशेषज्ञों के मुताबिक 3 में से एक बच्चा गैर-अल्कोहल फैटी लिवर रोग (एनएएफएलडी) से पीडि़त है। यह रोग मुख्य रूप से चीनी के अधिक सेवन के कारण होता है। 5-16 वर्ष की आयु के बच्चों में यह रोग एक चिंता का विषय बन गया है। पहले, बच्चों को लिवर रोग से सुरक्षित माना जाता था। केवल एक दशक में एनएएफएलडी से पीडि़त बच्चों की संख्या 10-33 प्रतिशत तक बढ़ गई है।
बाल चिकित्सा हेपेटोलॉजिस्ट, पीयूष उपाध्याय ने कहा कि अधिक चीनी और अस्वास्थ्यकर वसा वाले प्रसंस्कृत भोजन का सेवन बच्चों में एनएएफएलडी रोग का प्रमुख कारण है। मीठे पेय और जंक फूड के खतरों के प्रति आगाह करते हुए, उन्होंने बताया कि ट्राइग्लिसराइड्स नामक एक प्रकार की वसा, लिवर कोशिकाओं में जमा हो जाती है। इससे शरीर द्वारा ली जाने वाली या उत्पादित वसा की मात्रा और लिवर की इसे संसाधित करने और खत्म करने की क्षमता के बीच असंतुलन हो जाता है।
इससे इस रोग की संभावना बढ़ जाती है। उपाध्याय ने कहा, ‘यह असंतुलन कई कारकों, जैसे आनुवंशिकी, गतिहीन जीवन शैली, मोटापा, इंसुलिन प्रतिरोध और अस्वास्थ्यकर आहार के कारण होता है। दशकों पहले, फैटी लिवर रोग मुख्य रूप से शराब की लत के कारण होता था।’ ‘हालांकि, गैरअल्कोहल फैटी लिवर रोग तेजी से आम होता जा रहा है। हर महीने एनएएफएलडी वाले लगभग 60-70 बच्चे देखे जा सकते हैं जो एक दशक के मुकाबले दोगुने से भी अधिक है।’
एक अन्य गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट, पुनीत मेहरोत्रा ने कहा, ‘कई अध्ययनों से पता चला है कि जीवनशैली में बदलाव कर एनएएफएलडी को रोका जा सकता है। इसके लिए चीनी और जंक फूड का सेवन कम करना और नियमित रूप से कम से कम 30 मिनट तक व्यायाम करना होगा।’ उन्होंने एनएएफएलडी के लिवर सिरोसिस में बदलने का खतरा बताते हुए कहा कि यह एक गंभीर स्थिति है। इसका उपचार लिवर प्रत्यारोपण है।
पीडियाट्रिक्स की ओर से कहा गया है कि यदि अलग-अलग बच्चों की उम्र को इसे दिया ही जाना है तो 2 वर्ष से 5 वर्ष तक के बच्चों के लिए 125 मिलीलीटर प्रति दिन (आधा कप) तक इसे सीमित रखना चाहिए और इससे ऊपर 5 साल की उम्र वालों 250 मिलीलीटर प्रतिदिन (एक पूर्ण कप) दिया जाना चाहिए। राम मनोहर लोहिया अस्पताल की वरिष्ठ बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. हेमा गुप्ता मित्तल का कहना है कि यदि बच्चों को जूस जैसी चीज दी ही जानी है तो उनको ये ताजा जूस के रूप में दी जा सकती है। उन्होंने बताया कि कैफीनयुक्त पेय पर इंडियन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स ने दिशा-निर्देश भी जारी किए हैं।