किसानो द्वारा रेल रोको आंदोलन वापिस लेने से लाखों यात्रियों की सांस मे आई सांस
यात्रीगण कृप्या ध्याद दें, अब फिर पटरी पर लौटेगी ट्रेन
शंभू बॉर्डर पर ही पक्के मोर्च के होने को है 100 दिन पूरे
चंडीगढ, 22 मई (विश्ववार्ता) मुख्यमंत्री भगवंत मान के हस्तक्षेप के बाद रेल रोको आंदोलन वापिस लिये जाने के बाद निस्संदेह किसानों का यह ऐलान ट्रेनों से सफर करने वाले लाखों लोगों ने राहत भरी सांस ली है।
इसके साथ ही पंजाब के उन उद्योगपतियों ने भी राहत की सांस ली है, जिनका कारोबार इस विरोध के कारण प्रभावित हो रहा था। 13 फरवरी को पंजाब के कुछ किसान संगठनों ने अपनी मांगों को लेकर ‘दिल्ली चलो’ का नारा लगाकर आंदोलन शुरू किया, लेकिन हरियाणा सरकार ने पंजाब के भीतर की सीमाएं सील कर दीं और किसानों को हरियाणा में प्रवेश नहीं करने दिया।
हालांकि किसानों ने कई बार हरियाणा में घुसने की कोशिश की, लेकिन भारी बंदोबस्त के चलते आंदोलनकारी किसान हरियाणा में दाखिल नहीं हो सके।
इसके चलते किसानों ने शंभू बॉर्डर पर ही पक्का मोर्चा लगा लिया, जिसे अब 100 दिन पूरे होने वाले हैं। आंदोलन के इस दौर में अब तक 20 से ज्यादा किसानों की जान जा चुकी है। किसान नेताओं ने सोमवार को यह भी घोषणा की कि आंदोलन के सौ दिन पूरे होने पर शंभू बॉर्डर पर 40-50 हजार किसानों की बड़ी सभा होगी। इसमें एक बात बेहद अहम है कि ज्यादातर किसान संगठनों ने इस आंदोलन से दूरी बना रखी है।
उन्होंने कहा कि आंदोलन का यह तरीका किसी भी तरह से सही नहीं है। इससे कोई फायदा नहीं होगा, उल्टे इससे किसानों की छवि ही खराब होगी। इस आंदोलन को लेकर राजनीतिक दलों का रुख अलग-अलग रहा है।
ज्यादातर राजनीतिक दल किसानों की मांगों का समर्थन करते हैं लेकिन आंदोलन के बारे में कुछ भी कहने से बचते रहे हैं। इससे यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा था। इस बीच 17 अप्रैल को शंभू रेलवे ट्रैक पर भी किसानों ने डटकर मोर्चा लगा लिया, जिससे रेल यातायात प्रभावित हुआ।
धरने से रोजाना करीब 200 ट्रेनें प्रभावित हुईं। इनमें से 65 ट्रेनें रद्द की जा रही हैं। बाकी को या तो देरी से चलाया गया या वैकल्पिक मार्गों से भेजा गया। इससे रेलवे को करोड़ों रुपये का नुकसान हो रहा था। पंजाब के उद्योग जगत को नुकसान हो रहा था, जिसके चलते अब उद्योगपतियों ने किसानों के खिलाफ खुलकर बोलना शुरू कर दिया। ऑल इंडस्ट्रीज एंड ट्रेड फोरम (एआईटीएफ) ने कहा कि उन्होंने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर दस दिनों के भीतर रेलवे ट्रैक खाली नहीं किए गए तो वह किसानों के खिलाफ मोर्चा खोल देंगे। इसमें कोई शक नहीं कि किसान नेताओं के इस फैसले से जहां पंजाब के रेलवे और उद्योगों को नुकसान से बचाया जा सकेगा, वहीं इससे परेशान लाखों लोगों को भी राहत मिलेगी।