आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत का बड़ा बयान आया सामने
कहा मणिपुर को लेकर आरएसएस चीफ ने जताई थी चिंता
कहा ‘काम करे, अहंकार नहीं, वही सच्चा सेवक’
चुनाव पर भी बोले मोहन भागवत
चंडीगढ, 13 जून (विश्ववार्ता) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने राज्य मणिपुर को लेकर चिंता जताई थी। उनका बयान ऐसे समय में सामने आया है, जब नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है और मंत्रालय का भी बंटवारा हो चुका है. ऐसे में उनकी ओर से दिए गए बयान की टाइमिंग ने सियासी हलचल तेज कर दी है. इसके अलावा, उन्होंने अपने बयान में जिन विषयों का चयन किया है, वो भी बड़े पैमाने पर लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं।
मोहन भागवत ने कहा, ‘लोगों ने अपना जनादेश दे दिया है. हर चीज उसके हिसाब से होनी चाहिए. कैसी होगी? कब होगी? इन सब में संघ नहीं जाता है. क्योंकि समाज परिवर्तन से ही व्यवस्था परिवर्तन होता है.’उन्होंने कहा, ‘इस बार भी हमने अपने लोकमत जागरण का काम किया है. वास्तविक सेवक मर्यादा का पालन करते हुए चलता है. अपने कर्तव्य को कुशलता पूर्वक करना आवश्यक है.’ उन्होंने कहा, ‘काम करें, लेकिन इसे मैंने करके दिखाया… इसका अहंकार हमें नहीं पालना चाहिए. जो ऐसा करता है. वही असली सेवक है.’
दरअसल, मोहन भागवत ने कहा, “चुनाव सहमति बनाने की प्रक्रिया है. सहचित्त संसद में किसी भी प्रश्न के दोनों पहलू सामने आए इसलिए ऐसी व्यवस्था है. चुनाव प्रचार में जिस प्रकार एक-दूसरे को लताडऩा, तकनीकी का दुरुपयोग, असत्य प्रसारित करना ठीक नहीं है.”
क्रस्स् प्रमुख मोहन भागवत का बहुत बड़ा बयान; बोले- चुनाव प्रचार में मर्यादा खत्म की, झूठ बोला, मणिपुर त्राहि-त्राहि कर रहा, कौन ध्यान देगा?लेकिन फिर अचानक जो कलह वहां पर उपजा या उपजाया गया, उसकी आग में मणिपुर अभी तक जल रहा है, त्राहि-त्राहि कर रहा है। इस पर कौन ध्यान देगा? मोहन भागवत ने कहा कि, प्राथमिकता देकर उसका विचार करना, यह कर्तव्य है। मसलन, मणिपुर हिंसा पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का यह बड़ा बयान इशारों-इशारों में मौजूदा सरकार को घेर रहा है। मोहन भागवत के इस बयान से हलचल मच गई है।
चुनाव पर भी बोले मोहन भागवत
यही नहीं, मणिपुर हिंसा के अलावा आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव को लेकर भी बयान दिया। मोहन भागवत ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान झूठी बातें परोसी गईं। चुनाव प्रचार के दौरान हमारी बातों से समाज में मन मुटाव बढ़ेगा, दो गुट बटेंगे। आपस में शंका-संशय उत्पन्न होगा। इसका भी ख्याल नहीं रखा गया। वहीं इस सबमें बिना कारण संघ जैसे संगठन को भी उसमें खींचा गया। मोहन भागवत ने कहा कि, टेक्नॉलजी का सहारा लेकर असत्य बातें परोसी गईं। नितांत असत्य। क्या शास्त्र का, विद्या का और विज्ञान का ये उपयोग है। सज्जन विद्या का ये उपयोग नहीं करते।
विपक्ष के विचारों की भी अहमियत हो- मोहन भागवत
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि, विपक्ष के विचारों की भी अहमियत होनी चाहिए। चुनाव लडऩे में एक मर्यादा होनी चाहिए लेकिन लोकसभा चुनाव में उसका ख्याल नहीं रखा गया। भागवत ने कहा कि दो पक्ष हैं, एक को विरोधी पक्ष कहते हैं। मगर मैं प्रतिपक्ष कहता हूँ। वो विरोधी पक्ष नहीं है। उसको विरोधी मानना भी नहीं चाहिए। वो प्रतिपक्ष है। वो एक पहलू उजागर कर रहा है। उसका भी विचार होना चाहिए। ऐसा जब चल रहा है तो चुनाव लडऩे में भी एक मर्यादा होती है। उस मर्यादा का पालन नहीं हुआ। उसका पालन होना इसलिए आवश्यक है क्योंकि हमारे देश के सामने अभी चुनौतियाँ समाप्त नहीं हुईं हैं और हम चुनाव में कोई युद्ध नहीं लड़ रहे, बल्कि एक प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।
चुनाव हो गए, अब भी बातें चल रहीं
मोहन भागवत ने कहा कि, चुनाव सम्पन्न हो गए, परिणाम भी आ गए और सरकार भी बन गई। लेकिन उसकी चर्चा अब तक चल रही है। जो हुआ क्यों हुआ, कैसे हुआ, क्या हुआ? चुनाव लोकतंत्र में प्रति पांच वर्ष होने वाली घटना है और ये होती है। उसके अपने नियम और सिद्धांत हैं। अपने देश के संचालन और निर्धारण के लिए ये महत्वपूर्ण घटना है। लेकिन हम इसी पर बातें करते रहे हैं, इतना महत्वपूर्ण क्यों है? समाज ने अपना मत दे दिया, उसके अनुसार सब होगा। हम अपना कर्तव्य करते रहते हैं लोकमत परिष्कार का। प्रतिवर्ष करते हैं, प्रति चुनाव में करते हैं, इस बार भी किया है।
अपने आचरण में समान दृष्टि व्यवहार लाओ
मोहन भागवत ने कहा कि, शक्ति के साथ शील संपन्न बनो, शील अपने धर्म और संस्कृति से आता है, जो सत्य के बाद अहिंसा को कहता है। सबके प्रति सद्भावना को कहता है। सबके प्रति सद्भावना को लेकर पुरानी बातों को लेकर सबको अपनाना और हम एक दूसरे को अपना सके, इसके लिए जो बदल अपने में करना है, उसका आरंभ अपने आप से और अपने घर से करें। मोहन भागवत ने कहा कि जैसे अपने ही बंधुओं को हमने दूर किया। उनको लेने के लिए ये जो जाति-पाति की बात है, इसे छोड़ दो।
मोहन भागवत ने कहा कि यह बात भाषण में तो जाती है, कार्यक्रमों में जाती है लेकिन क्या हमारे आचरणों में और घर के आचरणों में जाती है। ये जानी चाहिए। उसकी जगह समान दृष्टि व्यवहार की प्रतिष्ठा होनी चाहिए। कठिन होगा, लेकिन देश के लिए करना होगा। हजारों वर्षों से जो पाप हमने किया है, उसके पश्चाताप के लिए हमें करना होगा।