*वर्तमान हालत के मद्देनजर वास्तविकता से दूर व बचकाना बताया सरकार का फैसला*
*जमीन सरल शर्तों व पुरानी कीमत पर पुराने खेती करने वालों को ही फिर से ठेके पर देने की वकालत की*
*चण्डीगढ़, 29 अप्रैल- आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब के सीनियर व विपक्ष के नेता हरपाल सिंह चीमा ने कांग्रेस सरकार से मांग की है कि राज्य में पंचायती जमीनों की नए सिरे से वार्षिक बोली की तथा-कथित प्रक्रिया तुरंत रोकी जाए और कोरोना वायरस के कारण बने मुश्किल हालत के मद्देनजर यह पंचायती जमीनें इस साल के लिए पिछले साल की कीमत पर ही किसानों-खेती करने वालों को ठेके पर दी जाए, जो पिछले साल से खेती करते आ रहे हैं।
पार्टी हैडक्वाटर से जारी बयान के द्वारा हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि कफ्र्यू (लॉकडाउन) के दौरान राज्य सरकार की तरफ से पंचायती जमीनों को बोली करवा कर ठेके छापने पर चड़ाने की प्रक्रिया शुरू करना, पूरी तरह बचकाना फैसला है, जिस से स्पष्ट होता है कि कैप्टन सरकार कोरोना और कफ्र्यू के कारण पैदा हुई जमीनी हकीकतें और चुनौतियों से पूरी तरह बेखबर है।
चीमा ने सवाल उठाया है जब खुली बोली के द्वारा पंचायती जमीनें ठेके पर दिए जाएंगी क्या तब एक स्थान पर इक्कट्ठ नहीं होगा? क्या ऐसे तुग़लकी फरमान सोशल डिस्टैंसिंग फार्मूले की धज्जियां नहीं उडाउएंगे? चीमा मुताबिक समय की नजाकत के मद्देनजर ऐसे फैसले घातक साबित हो सकते हैं।
हरपाल सिंह चीमा ने कहा कि बेशक लोगों ने गेहूं की फसल काट ली है, परंतु अभी 100 प्रतिशत किसानों की फसल बिकी नहीं है। लिफ्टिंग और बारदाने की भारी कमी के कारण मंडियों में गेहूं के अंबार लगे हुए हैं और बहुत से लोगों को गेहूं घरों में ही रखनी पड़ रहा है। जिन लोगों की फसल बिक चुकी है, उन को समय पर पैसों की अदायगी नहीं हो रही। ऐसे हालत में पंचायती जमीन ठेके पर लेने के लिए मौके पर अपेक्षित प्राथमिक राशि ही लोगों के पास नहीं है तो बहुत से लोग चाह कर भी इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बन सकते।
चीमा ने मांग की है कि सरकार शर्तें ढीली कर पिछले साल ठेके की जमीनों पर खेती करने वालों को ही पंचायती विभाग की लगभग 1 लाख 22 हजार एकड़ अगले साल के लिए ठेके पर दे और राज्य के दलितों के हिस्से आती एक-तिहाई पंचायती जमीन वास्तविकता में गरीब-भूमीहीन दलितों को ठेके पर देना यकीनी बनाए।
हरपाल सिंह चीमा ने पंचायती जमीनों की ठेके की राशि पर सरकार की तरफ से 30 प्रतिशत सरकारी ‘डाका’ गैर-कानूनी और पंचायतों समेत पंचायती राज्य कानून के उलट बताया।