संत शिरोमणि गुरू रविदास की जयंती आज देशभर मे मनाई जा रही है धूमधाम से
चंडीगढ, 24 फरवरी (विश्ववार्ता) हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल माघ पूर्णिमा के दिन यानि की आज संत शिरोमणि गुरू रविदास जयंती देशभर मे धूमधाम से मनाई जाती है। वाराणसी के पास एक गांव में जन्में संत रविदास बेहद धार्मिक स्वभाव के थे। वे भक्तिकालीन संत और महान समाज सुधारक थे। शिरोमणि श्री रविदास की जंयती पर कहीं, भंडारे लगाए गए तो कहीं झांकियां निकाल की गुरु के दिखाए मार्ग पर चलने का आह्वान किया जाता है। कई स्थानों पर शोभा यात्राएं भी निकाली जाती है और समाज के सभी वर्गों को एकजुट रहने का संदेश दिया जाता है।
उनकी जयंती के मौके पर शोभा यात्राएं निकाली जाती हैं और भजन कीर्तन कर उनको याद किया जाता है। उन्हें संत रविदास, गुरु रविदास, रैदास और रोहिदास जैसे कई नामों से जाना जाता है। संत रविदास ने लोगों को बिना भेदभाव के आपस में प्रेम करने की शिक्षा दी और इसी तरह से वे भक्ति के मार्ग पर चलकर संत रविदास कहलाए।
खासतौर पर यह दिन उत्तर भारत में मनाया जाता है, जिसमें पंजाब हिमाचल प्रदेश हरियाणा और चंडीगढ़ शामिल हैं।कहा जाता है कि गुरु रविदास से प्रभावित होकर मीराबाई ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था. राजस्थान के चित्तौडग़ढ़ जिले में मीरा के मंदिर के सामने एक छोटी छतरी बनी है, जिसमें संत रविदास के पद चिन्ह दिखाई देते है. संत रविदास जी की जयंती के अवसर पर उन्हें याद किया जाता है. आज भी करोड़ों लोग संत रविदास को अपना आदर्श मानकर उनकी पूजा करते हैं. इस अवसर पर कई जगह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है।
उनके अनुयायी गुरु रविदास के सम्मान में आरती करते हैं. वाराणसी में उनके जन्म स्थान पर बने श्री गुरु रविदास जन्मस्थान मंदिर में भव्य समारोह का आयोजन किया जाता है। उनके कुछ अनुयायी पवित्र नदी में डुबकी भी लगाते हैं। संत रविदास को जयदेव, नामदेव और गुरुनानक जैसे महान संतों की अविरल परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में जाना जाता है. वे अपनी भक्ति में भाव और सदाचार के महत्व पर जोर देते थे. उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
संत रविदास की जयंती पर उनके दिया गए अनमोल वचनों को पढ़ें, ये जीवन जीने का सही मार्ग बताते हैं।
भगवान उस हृदय में निवास करते हैं जिसके मन में किसी के प्रति बैर भाव नहीं है, कोई लालच या द्वेष नहीं है।
तेज हवा के कारण सागर की लहरें उठती हैं और सागर में ही समा जाती हैं, उनका अलग कोई अस्तित्व नहीं होता, ऐसे ही परमात्मा के बिना मानव का कोई अस्तित्व नहीं होता।
ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन। पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।
कर्म करना हमारा धर्म है, फल पाना हमारा सौभाग्य है।